पृष्ठ:दासबोध.pdf/११२

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रजोगुण-निरूपण। ३१ । १३ । जो मनुष्य यह कुछ नहीं करना उन्ने मृतप्राय समझना चाहिए, उम्मन जन्म लेकरमाता को व्यर्थ कष्ट दिया ।।१४॥ जिन मनुज्यों में संध्या. मान, भजन, देवता का अर्चन, मंत्र, जप, 'वान और मानसपूजा नहीं है: भक्ति, प्रेम, निष्ठा और नेम नहीं है। जो देवता, धर्म और अतिथि-अभ्यागत को नहीं मानतः जिनमें सद्वद्धि और तुम नहीं है। जिन्होंने कभी कया और अध्यात्म-निरूपणा का श्रवण नहीं शिवाः जिन्होंने भलों की संगति नहीं की; जिनकी चित्तवृत्ति शुद्ध नहीं जिन्होंने मिथ्यामद में श्राकर कैवल्य की प्राप्ति नहीं की: जिनमें नीति, न्याय, पुगन्ध करने की शकि, युकायुक्त क्रिया और परलोक का साधन नहीं है जिनमें विद्या, वैभव और चातुर्य नहीं है। कला और सरस्वती का रम्य बिलास नहीं है। जिनमें शांति, क्षमा, दीक्षा, मैत्री, शुभ-अशुभ साधन आदि कुछ नहीं है: जिनमें शुचि, स्वधर्म, आचार, विचार, इह- लोक, परलोक की चिन्ता नहीं है और मनमाना वर्ताव है। जिनमें कर्म, उपासना, मान, वैराग्य, योग, धैर्य, कुछ भी, नहीं देख पड़ते; जिनमें उप- गति, त्याग, समता, सुलक्षण आदर और परमेश्वर में प्रीति नहीं है। जिनके अंतःकरण में परगुण के विषय में संतोय, पर-उपकार में सुख और हरिभनि का लेश नहीं है-ऐसे पुरुष जीतेही मृतक-समान है। पवित्र पुरुपों को चाहिये कि उनसे बातचीत भी न करें ॥ १५-२६ ।। अस्तु: जिसके पास पूर्वजन्मों की पूरी पुग्य-सामग्री है उसीसे भगव- गति बनती है । और, फिर, जो जैसा करते हैं वे वैसा पाते हैं ॥ २७ ॥ पाँचवाँ समास-रजोगुण-निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ यह देह सत्त्व, रज, तम, इन तीन गुणों से युक्त है। इनमें सतोगुण उत्तम है ॥१॥ क्योंकि सतोगुण से मनुष्य भगवान की भक्ति, रजोगुण से पुनरावृत्ति, अर्थात् फिर मनुष्य-जन्म, और तमोगुण से अधोगति पाते है ॥२॥ ऊर्ध्व गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः॥ जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥ १ ॥ उनमें भी शृद्ध और शवल करके दो भेद हैं । जो निर्मल है वहीं शुद्ध है और शबल गुण वाधक हैं ॥ ३॥ हे विचक्षण श्रोता लोग, अब शुद्ध-