पृष्ठ:दासबोध.pdf/११३

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दासबोध । [ दशक २ और शबल का लक्षण सावधान होकर सुनो । जिन लोगों में शुद्ध गुण हैं वे परमार्थी और जिनमें शवल है वे संसारी होते हैं ।। ४ । अब, उन संसारी लोगों की यह स्थिति है कि उनकी देह में तीनों गुण वर्तते हैं। उनमें एक गुण की जब विशेषता होती है तब दो गुण हीन पड़ जाते हैं ॥ ५॥ रज, तम और सत्त्व-इन्हींसे जीवन चलता है। अब रजोगुण का कर्तृत्व, अर्थात् कार्य का स्वरूप, दिखाता हूं ।। ६ ॥ रजोगुण शरीर में आने से मनुष्य कैसा बर्ताव करता है सो चतुर श्रोता सावधान होकर सुनें ॥७॥ जो यह निश्चय करता है, कि घर मेरा है, गृहस्थी मेरी है; ईश्वर कौन चीज है, वह रजोगुणी है ॥८॥ माता, पिता, स्त्री, लड़का, पुतोह और लड़की-इतनेही लोगों की जो चिंता करता हो वह रजोगुणी है ॥ ६ ॥ अच्छा खाना पीना, अच्छा पहिनना ओढ़ना और दूसरे की वस्तु की अभि- लाषा करना रजोगुण का लक्षण है ||१०|| दान-धर्म, जप-ध्यान, पाप-पुण्य, आदि का जो विचार नहीं करता वह रजोगुणी है ॥ ११ ॥ जो तीर्थ, व्रत अतिथि-अभ्यागत आदि को नहीं जानता और जिसकी इच्छा अनाचार में लगी रहती है वह रजोगुणी है ॥ १२ ॥ धन-धान्य और द्रव्य के जोड़ने में जिसका मन लगा रहता है और जो अत्यन्त कृपण है वह रजोगुणी है ॥ १३ ॥ जो कहता हो कि मैं तरुण हूं, मैं सुन्दर हूं, मैं वलान्य हूं, मैं चतुर हूं और मैं सब में बड़ा हूं वह रजोगुणी है ॥ १४ ॥ जो मन में यह भावना रखता हो कि मेरा देश है, मेरा गावँ है, मेरा महल है और मेरा ठौर है वह रजोगुणी है ॥१५॥ जो यह चाहता हो कि दूसरे का सब चला जाय और मेरा ही बना रहे वह रजोगुणी है ॥१६॥ जिसकी देह में कपट, मत्सर, तिरस्कार अथवा काम का विकार उठता हो वह रजोगुणी है ।। १७ ॥ अपने बालक पर जिसकी बड़ी ममता हो, जिसे स्त्री वहुत प्यारी हो और जिसका अपने सब लोगों पर बहुत प्रेम हो वह रजोगुणी है ॥१८॥ अपने प्यारों की चिन्ता जिस समय चित्त में आजाय, समझ लेना चाहिये कि उसी समय शीघ्रगति से रजोगुण आ गया है ।। १६ ।। संसार के अनेकों संकटों से कैसे निर्वाह होगा, इस बात की जिसे बड़ी चिन्ता रहती हो वह रजोगुणी पुरुष है ॥ २० ॥ अथवा पहले भोगे हुए संकटों की याद कर कर के मन में दुःखित होता हो वह रजोगुणी है ॥२१॥ किसीका वैभव देख कर जिसके पेट में लालसा उठती हो और जो आशा के कारण दुखित रहता हो वह रजोगुणी है. ॥ २२ ॥ जो कुछ देखता हो उसीके पाने की इच्छा करता हो और न मिलने पर जिसे दुख