पृष्ठ:दासबोध.pdf/११६

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तमोगुण-निरूपण। स्पना तमोगुण का लक्षण है ॥ १५ ॥ युद्ध देखने, युद्ध की वार्ता सुनने, स्वयं युद्ध करके सरने अथवा मारने, प्रादि की इच्छा होना तमोगुण है }। १२॥ सत्तर में आकर भनि तोड़ना, मन्दिर गिराना, फले हुए वृक्ष तोड़ना तमोगुण का चिन्ह है ॥ १७ ॥ सत्कर्म न अच्छे लगते हों, नाना प्रकार के दोप अच्छे लगते हों, चित्त में पाप का भय न हो तो इसे तमो- गुण जानी ।। २८ ॥ ब्राह्मण की वृत्ति बन्द करना. जीवमात्र को दुःख देना और प्रमाद करना तमोगुण का लक्षण है ॥ १६ ॥ आग लगाकर, शस्त्र चनाकर, जहर देकर अथवा अन्य भौतिक उपाय से, मत्सर के कारण, जीवों का क्षत्र करना तमोगुण है ।। २० ॥ दूसरे के दुख से संतोष हो, निदरता अच्छी लगे और प्रपंच से घबड़ाता न हो तो यह तमोगुण का लक्षण है ॥२२॥ दृन्नरों में लड़ाई लगा कर स्वयं तमाशा देखता हो और मन से कुबुद्धि का स्वीकार करता हो, तो यह तमोगुण है ॥ २२ ॥ वैभव पाकर जीवों को कष्ट देता हो और मन में दया न आती हो तो यह तमोगुण का लक्षण है ।। २३ ।। जिसे भनि, भाव, तीर्थ, देव, श्रादि पर श्रद्धा न हो तथा वेद, शास्त्र, आदि किसीकी भी आवश्यकता न हो वह तमोगुणी है ॥ २४ ॥ जो म्नान-संध्या नादि नित्य-नियमन करता हो तथा जो स्वधर्म से भ्रष्ट हो गया हो वह तमोगुणी है ।। २५ ॥ जो जेठे भाई, बाप और माता की बातें न सहता हो और शीघ्र क्रोधित होकर निकल जाता हो वह तमोगुणी है ॥ २६ ॥ जो आलसी बन कर चुपके बैठे बैठे खाता हो और कोई बातही उसे न सूझती हो वह तमोगुणी है ॥२७॥ जिसे चेटक विद्या का अभ्यास, शस्त्रविद्या की हौस और कुश्ती लड़ने का शौक हो उसे भी तमोगुण-प्रधान समझो ॥ २८ ॥ पीठ में छेद कर आंकड़ा लगाने, दहकते हुए अंगारों के कुंड में पैठने और काष्ठयंत्र से जीभ छेदने आदि के मानगन, देवताओं के लिए, करना तमोगुण का लक्षण है ॥ २६ ॥ खप्पर में बिनोले जला कर सिर पर रखना, मशाल से अपना शरीर जला लेना या स्वयं शस्त्र मार लेना, आदि ढोंग कर के देवता को प्रसन्न करना तमोगुण है ॥ ३०॥ सस्तक काट कर चढ़ाना, अथवा इसी प्रकार की अन्य रीति से अपना शरीर अर्पण करना या ऊंचे पर से अपनेको डाल कर मर जाना और इस प्रकार देवता को प्रसन्न करना तमोगुण का लक्षण है ॥ ३१ ॥ निग्रह से धरना रखकर बैठना या अपनेको टाँग रखना या देवता के दर- वाजे पर जीव देना तमोगुण है ॥ ३२॥ निराहार व्रत करना, पंचाग्नि तापना, धूम्रपान करना, अपनेको जमीन में पूर लेना तमोगुण के लक्षण