पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२०

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समास ७] लतोगुण-निरूपण। सुख से परमात्मा के नाम लेता हुआ और हाथ से करताल बजाता हुआ जो नाचता हो और विरदावली गाता हो तथा साधु जनों के पैरों की धूल लेकर मस्तक में लगाता हो वह सत्वगुणी हैं ॥४१॥ जिसका देहा- भिनान छूट गया हो, विपयों से प्रवल वैराग्य हो गया हो और जिसे माया मिथ्या जान पड़ती हो वह सत्वगुणी है ।।१२।। जिसके मन में यह आता हो कि संसार में फँसने से क्या लाभ है-उससे मुक्त होने का कुछ उपाय करना चाहिये वह सात्विकी है ।। ४३ ।। संसार से मन घबड़ाता हो और सन में ऐसा ज्ञान उठता हो कि कुछ भजन करें तो इसे सत्वगुण का लक्षण समझो । ४८ ।। जो अपने आश्रम में रहते हुए अति आदर से नित्य-नियम करता हो और सदा राम में प्रीति रखता हो वह सत्वगुणी है ।। ४५. । सम्पूर्ण विषयों से घृणा होगई तो-और केवल परमार्थ में जिसका मन लगा हो; संकट आने पर जिसे धैर्य आता हो वह सत्वगुणी है।॥ ४६॥ सदा उदासीन रहता हो, नाना प्रकार के भोगों से जिसका मन हटता हो और भगवद्भजन में जिसका मन लगता हो वह सत्वगुणी है ॥४७॥ सांसारिक पदार्थों में मन न लगता हो और दृढ़ भक्ति के साथ भगवान को याद करता हो-वह सत्वगुणी है ।। ४८॥ चाहे लोग उसे नाना प्रकार का दोप भी लगाते हों, तौभी वह उन पर अधिक प्रेम करता हो और जिसके अन्तःकरण में परमार्थ का निश्चय समा गया हो वह सत्वगुणी है ॥ ४६॥ जिसके अंतःकरण में "मैं कौन हूं-यह स्फूर्ति उठती हो और जो अपने सत्स्वरूप का चिंतन करता हो तथा चुरे सन्देहों का निवारण करता हो वह सत्वगुणी है ॥ ५० ॥ जिसके अन्तः- करण में यह इच्छा होती हो कि शरीर की कुछ सार्थकता करें वह सत्व- गुणी है ॥ ५१ ॥ जिसमें शान्ति, क्षमा, दया और निश्चय उपजे; जान लो कि, उसके अन्तःकरण में सत्वगुण सा गया ।। ५२ ।। अतिथि-अभ्या- गत आ जाने पर जो उसे भूखा नहीं जाने देता और यथाशक्ति दान देता है वह सत्वगुणी है ॥५३॥ यदि कोई दीन भिक्षुक अाश्रय के लिए अपने पास आवे तो उन्हें स्थान देना सत्वगुण का लक्षण है ॥ ५४ ॥ घर में अन्न की कमी होने पर भी जो दीन-दुःखियों को कभी विमुख नहीं जाने देता और शक्ति के अनुसार सदा देता है वह सत्वगुणी है ॥५५॥ जिसने रसना जीत ली हो, जिसकी वासना तृप्त हो और जिसे कामना न हो वह सत्वगुणी है ।। ५६ ।। जो कुछ होनेवाला है वह होता जाता है और सांसारिक संकट भी आते जाते हैं; तथापि जिसका चित्त ईश्वर की ओर से नहीं हटता वह सत्वगुणी है ॥ ५७ ॥ केवल भगवान् के लिए जिसने