पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२१

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20 दासबोध। [ दशक २ सब सुख छोड़ दिये हों और देह को कुछ न समझता हो वह सत्वगुणी है ॥५८|| विषय की ओर वासना दौड़ती हो, परन्तु वह कभी न डिगता हो और जिसका धीरज अचल हो वह सत्वगुणी है ॥५६॥ आपदाओं से देह पीड़ित होगया हो और भूख प्यास के मारे कुम्हला गया हो, तौभी जिसका निश्चय अटल रहा हो वह सत्वगुणी है ॥ ६०॥ श्रवण, भनन और निदिध्यास से जिसे समाधान हुआ हो और शुद्ध आत्मज्ञान जिसे हुआ हो वह सत्वगुणी है ॥ ६१ ॥ जिले अहंकार न हो; जिसमें नैराश्य विलसता हो और जिसमें कृपा वसती हो वह सत्वगुणी है ॥ ६२॥ सब से नन्नता के साथ बोलता हो; मर्यादा के साथ चलता हो और जिसने सब जनों संतुष्ट किया हो वह सत्वगुणी है ॥ ६३ ॥ जो सब लोगों का मित्र हो, जो विरोध किसीसे न रखता हो; जिसने परोप- कार के लिए जीवन अर्पण कर दिया हो वह सत्वगुणी है ॥ ६४ ॥ अपने कार्य की अपेक्षा दूसरे का कार्य जो अधिक जी लगा कर सिद्ध करता हो और मरने के पीछे अपनी कीर्ति छोड़ जाता हो वह सत्वगुणी है ॥ ६५ ॥ दूसरे के गुणदोप मन में न रखता हो, अर्थात् जैसे समुद्र में कोई वस्तु डालने से वह बाहर फेंक देता है उसी प्रकार दूसरे के गुणदोष सुनकर मन में न रखता हो वह सत्वगुणी है ॥ ६६ ॥ नीच वचन सहना, उनका उत्तर न देना और आये हुए क्रोध को सम्हालना सत्व गुण का लक्षण है ॥ ६७ ॥ यदि कोई अन्याय के बिना सताता हो और नाना दुःख देता हो तो वह भी मनही में रखता हो वह सत्वगुणी है ॥ ६॥ परोपकार के लिए शारीरिक कष्ट सहना, दुर्जनों से भी बुरा बर्ताव न करना और निन्दा करनेवाले का भी उपकार करना सत्वगुण का लक्षण है॥ ६६ ॥ यदि इधर उधर मन जाय तो विवेक से उसे रोके और इन्द्रियों को दमन करे तो यह सत्वगुण का लक्षण है ॥ ७० ॥ उत्तम कर्मों का आचरण करे, बुरे कर्मों का त्याग करे और भक्ति-मार्ग पर चले तो यह सत्वगुण का लक्षण है ॥ ७१ ॥ जिसे प्रात-स्मान और पुराण-श्रवण रुचता हो और जो नाना मंत्रों से देवता का अर्चन करता हो वह सत्व- गुणी है ॥ ७२ ॥ पर्वकाल आने पर और पूजा के समय जो उत्सव करता हो तथा जयन्तियों से जिसे बहुत प्रीति हो वह सत्वगुणी है ॥ ७३ ॥ विदेश में मरे हुए लोगों का संस्कार करना अथवा स्वयं वहां जाकर उप- स्थित होना सत्वगुण का लक्षण है ॥ ७४ ॥ कोई, किसीको यदि मारता हो तो उसे जाकर बचावे और जो जीव को बन्धन से छुड़ावे .वह सत्व- गुणी है ॥ ७५ ॥ जो शिवार्चन करता हो, लाखों बेलपत्तियां चढ़ाता हो,