पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२२

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समान ८] सद्धिद्या-निरूपण। अभिशेष करना हो, नामस्मरण में जिसका विश्वास हो, देवता के दर्शन अग्ने कन्नमय जो धिर-चित्त (स्वन्ध ) हो वह सत्वगुणी है ॥ ७६ ।। सन को देख कर जिसे परम सुख होता हो और आगे बढ़ कर जो उसे नार्वतीभाव में नमस्कार करता हो वह सत्वगुणी पुरुष है ॥ ७७ ॥ - जिन पर संतकृपा होती है वह वंश का उद्धार करता है ऐसा ही सतो- गुली पुरुप ईश्वर का अंश है ॥ ७ ॥ जो लोगों को सन्मार्ग दिखाता नो, जो उन्हें हरि-भजन में लगाता हो और यशानियों को ज्ञान सिखाता तो वह सतोगुणी है ॥ ७६ ॥ जिसे पुण्य-संस्कार, प्रदक्षिणा, और नम- स्कार प्यारा हो और जिसे वहुत सी उत्तम बातें याद हों वह सत्वगुणी

  • ॥ = || जो भक्ति के विषय में बड़ा उत्साही हो, जो पुस्तकें, अादि

संग्रह करता हो. और धातु-मूर्तियों की नाना प्रकार से जो पूजा करता हो बइ सन्त्रगुरणी है ॥ ८ ॥ स्वच्छ पूजा की सामग्री, माला, चेष्टन, आसन, पवित्र और उज्ज्वल बसन आदि एकत्र करना सत्वगुण का लक्षण है ॥ २॥ दुसर की पीड़ा से दुख होता हो, दूसरे के संतोष पर मुन्न मानता हो और वैराग्य देख कर हर्ष मानता हो वह सत्वगुणी है 11८३॥ जो दूसरे की शोभा से अपनी शोभा और दूसरे के दूपण से अपना दूपण मानता हो और दूसरे के दुख में जिसे दुख होता हो वह सत्वगुणी है ॥ ८॥ सारांश, निष्काम होकर परमात्मा का भजन और धर्मकार्य करना सतोगुण का मुख्य लक्षण है ॥ ५॥ सतोगुण ही संसार-सागर से पार करनेवाला है और इसीसे ज्ञानमार्ग का विवेक उपजता है ॥ ८ ॥ सत्वगुण से भगवान की भक्षित, ज्ञान की प्राप्ति और-सायुज्यमुधि होती ॥८७ ॥ यहां तक सतोगुण का संक्षेप वृतान्त, अपनी बुद्धि के अनु- सार, बतलाया । अब श्रोता लोग कृपापूर्वक आगे का वर्णन ध्यान देकर सुनें ॥८॥ आठवाँ समास-सद्विद्या-निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ सद्विद्या के लक्षण सुनो । ये लक्षण परम शुद्ध हैं । इनका विचार करने से आपही श्राप मनुष्य सद्विद्यावान हो जाता है ॥ १॥ सद्विद्यावाले पुरुष में उत्तम लक्षण विशेष होते हैं। ऐसे पुरुष के गुण सुन कर परम $