पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२३

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1 - दासबोध। [दशक २ लंतोष होता है॥२॥ वह पुरुष भाविक, सात्विक, प्रेमी, शान्तिशील, क्षमा- शील, दयाशील, शालीन, सत्कर्मों में तत्पर, और अमृतवचनी होता है॥३॥ सद्विद्यावान् पुरुप परम सुन्दर होते हुए चतुर, बहुत बलवान् होकर धीर, परम धनवान् होकर उदार होते हैं ॥ ४ ॥ वे परम ज्ञाता और भक्त, महा पंडित और विरता, महातपस्वी और शान्त होते हैं ॥ ५॥ वे वक्ता और नैराश्ययुक्त होते हैं, सर्वज्ञ होकर भी सद्ग्रन्थों का आदरयुक्ता श्रवण करते है तथा श्रेष्ठ होकर भी सब से नम्रता करते हैं॥६॥वे राजा होकर धार्मिक, शूर होकर विवेकी और तरुण होकर भी नियम से चलते हैं ॥ ७॥ वे बड़ों के बताये हुए मार्ग पर चलनेवाले, कुलाचार के अनु- सार चलनेवाले, युक, (अर्थात् ठीक ) भोजन करनेवाले, विकाररहित; वैद्य होकर भी परोपकारी और पद्महस्ती, अर्थात् यशस्वी, होते हैं ॥८॥ वे काम करनेवाले होकर भी निरभिमानी होते हैं, गायक और विष्णु- भशा होते हैं, तथा वैभव होने पर भी भगवद्भजन का बहुत आदर करते हैं ॥ ॥ वे तत्ववेत्ता होकर भी उदासीन होते हैं; बहुश्रुत होते हुए भी सज्जन होते हैं; वे मंत्री होकर भी गुणवान् और नीतिवान् होते हैं ॥१०॥ सद्विद्यावाले पुरुपं साधु, पवित्र और पुण्यवान होते हैं, अन्तशुद्ध, धर्मात्मा और कृपालु होते हैं-वे कर्म में निष्ठा रखनेवाले, स्वधर्माचरण में निर्मल' और निर्लोभ होते हैं; तथा भूल से यदि कोई अनिष्ट काम उनके हाथ से हो जाता है तो उस पर पश्चात्ताप करते रहते हैं ॥ ११ ॥ परमार्थ-प्रीति, सत्मार्ग, सक्रिया, धारणा, धृति, श्रुति, स्मृति, लीला (Grace ), युझिा, स्तुति, मति, परीक्षा आदि उत्तम बातों में सद्विद्या- वान् पुरुष की रुचि होती है ॥ १२ ॥ सद्विद्यावान् पुरुष दक्ष, धूर्त, अर्थात् सभ्य (Gallant), योग्य, तार्किक, सत्यवान् , साहित्यवान्, नियम करने- वाले, भेद जाननेवाले, कुशल, चपल, चमत्कारिक होते हैं॥१३॥जो श्रादर, सन्मान, तारतस्य, अर्थात् मर्यादा या परम्परा, प्रयोग, समय, प्रसंग और कार्यकारण के चिन्ह जानता हो और विचक्षण बोलनेवाला हो वह सद्विद्यावान् है ॥ १४ ॥ जो सावधान, उद्योगी, और साधक हो, वेदों और शास्त्रों पर व्याख्यान करनेवाला हो और निश्चयात्मक ज्ञान-विज्ञान का बोध करानेवाला हो वह सद्विद्यावान् है ॥ १५ ॥ जो पुरश्चरण, करने- वाला है, तीर्थवासी, दृढ़नती और काया को क्लेश देनेवाला है और जो उपासना करनेवाला और निग्रही है वह सद्विद्यावान् है ॥ १६ ॥ जो सदा सत्य, शुभ, कोमल वचन बोलता हो, निश्चय और सुख के वचन बोलता हो तथा एक बार कह कर बदलता न हो वह सद्विद्यावाला पुरुष है