पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२५

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४४ दासबोध। [ दशक २ चाहिये ॥ ३१ ॥ यों तो सद्विद्या बहुत अच्छी बात है; यह सब के पास होनी ही चाहिये; परन्तु विरक्त पुरुप के लिए इसके अभ्यास की बड़ी आवश्यकता है ॥ ३२॥ नववाँ समास-विरक्त-लक्षण । ॥ श्रीराम ॥ अव विरक्तों के लक्षण सुनो । विरक्तों में कौन गुण हो कि जिनसे उन- के शरीर में योगियों का भी सामर्थ्य आजाय ? ॥१॥ ऐसे कौन गुण हों कि जिनसे विरक्तों की सत्कीर्ति बढ़े, सार्थकता हो और उनकी महिमा बढ़े? ॥२॥ ऐसे कौन गुण विरका में हो कि जिनसे परमार्थ सिद्ध हो, जिनसे श्रानन्द की लहरै हिलोड़ें और जिनसे विवेकयुक्ता वैराग्य की वृद्धि हो ? ॥३॥ ऐसे कौन गुण हों, जिनसे सुख उमड़े, जिनसे सद्विद्या प्रसन्न हो और जिनके द्वारा मोक्षसहित भाग्य-लक्ष्मी प्रबल हो ? ॥४॥ वे ऐसे कौन गुण हैं कि जिनसे विरक्तों के मनोरथ पूर्ण होते हैं, सकल कामनाएं पूर्ण होती हैं और मधुर बोलने के लिए सरस्वती मुख में वास करती है? ॥ ५॥ वे गुण सुनिये और दृढ़ता के साथ जी में धरिये । तब फिर आप भूमंडल में विख्यात होंगे ॥६॥ विरता विवेकी हो, विरत लोग अध्यात्म- विद्या का प्रचार करें और इन्द्रिय-दमन करने में वे धैर्य अथवा दृढ़ता दिखलावें ॥ ७॥ विरक्त लोग साधन-मार्ग की रक्षा करें, लोगों को भजन में लगावें और विशेषतः ब्रह्मज्ञान प्रगट करें ॥ ८॥ विरका पुरुष को भक्तिः बढ़ाना चाहिये, शान्ति दिखाना चाहिये और अपनी विरति यत्त से करना चाहिये ॥ ६॥ विरक्तों को सक्रिया की प्रतिष्ठा करनी चाहिये, निवृत्ति का विस्तार करना चाहिये और जी में नैराश्य, दृढ़ता के साथ, धरना चाहिए ॥ १०॥ विरका को धर्म-स्थापना करनी चाहिये, विरक्त को नीति का अवलम्बन करना चाहिए, विरका को अति आदरपूर्वक क्षमा सँभालना चाहिए ॥ ११॥ विरक्षा को परमार्थ प्रकाशित करना चाहिए, उसे विचार का शोध करना चाहिए और सन्मार्ग तथा सत्वगुण अपने पास रखना चाहिए ॥१२॥ विरक्तों को चाहिये कि भाविकों को सँभाले, प्रेमी पुरुषों को संतुष्ट करें और शरण में आनेवाले भोलेभाले लोगों की उपेक्षा न करें ॥ १३ ॥ विरक्तों को परम दक्ष होना चाहिए, विरत्तों को नन्ताक्ष, (अर्थात् अन्तःकरण की साक्ष देनेवाला) होना चाहिए और .