पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विरमा लगा। रिकों को परमार्थ का पक्ष लेना चाहिये ॥ १४ ॥ विरक्त को अभ्यास करना चाचिये, उद्योग करना चाहिये और वस्तृत्व के द्वारा टूटा हुआ परमार्य फिरले खड़ा करना चाहिये।॥ १५॥ विरों को चाहिये कि विमलज्ञान का उपा सरे, वैराग्य की प्रशंसा करते रहे और निश्चयात्मक समाधान करे ॥२॥ बनली पर्वतिथियों का उत्सव करना चाहिये, भकों ने जारी रखना चाहिये और अड़चनों की परवा न करके, बड़े उत्साह के साथ, उपासना-मान का प्रचार करना चाहिए ॥१७॥ हरिकीर्तन करना चाहिये, अध्यात्म-निरूपण का प्रचार करना चाहिये और निन्दा करने- वाले दुष्टों को भनिमार्ग से लजाना चाहिये ॥ १८॥ बहुतो का उपकार करना चाहिये, भलेपन का जीर्णोद्धार करना चाहिए और बलपूर्वक पुण्य-मार्ग का विस्तार करना चाहिये ॥ १६ ॥ विरक्तों को स्वान, संध्या, जप, ध्यान, तीर्घयाना, भगवद्भजन, नित्य-नियम करना चाहिये और ऊपर से पवित्रता के साथ, नया अन्तःकरण से भी शृद्ध रहना चाहिये ॥२०॥ दृढ़ निश्चय धारण करना चाहिये, संसार को सुखपूर्ण करना चाहिये और अपने मुत्लंग से लोगों का उद्धार करना चाहिये ॥ २६ ॥ चिरनों को धीर, उदार और निरूपण में तत्पर रहना चाहिए ॥ २२ ॥ विरतों को सावधान रहना चाहिर, शृद्ध-मार्ग से जाना चाहिए और अपने जीवन को परोपकार में खर्च करके कीर्तिरूप से जीवित रहना चाहिए ॥ २३ ॥ विरजों को चाहिये कि वे विरतों का पता लगावे, साधुनों को पहचाने और संत, योगी तथा सजनों को अपना मित्र बनावें ॥ २४ ॥ बिरनों को चाहिए कि पुरश्चरण करें, तीर्थाटन करें और नाना प्रकार के स्थानों को परम रमणीय बनावें ॥ २५ ॥ विरक्तों को सांसारिक सत्कर्मों में शामिल होना चाहिए; परन्तु उदासवृत्ति न छोड़ना चाहिए-अर्थात् उन कमों में लिन न होना चाहिए और किसी विषय में भी दुराशा न जमने देना चाहिए ॥ २६ ॥ विरक्तो को चाहिये कि अन्तर्निष्ट रहें, क्रियाभ्रष्ट न हाँ और पराधीनता में पड़कर ओछे न बने ॥ २७ ॥ विरक्त को समय जानना चाहिये, प्रसंग परखना चाहिए और उसे सब प्रकार चतुर होना चाहिए ॥ २८ ॥ विरक्त को एकदेशी (परिमित ज्ञानवाला) न होना चाहिए; उसे सब बातों का अभ्यास करना चाहिए; और जो कुछ जानना हो पूरा पूरा जानना चाहिए ॥२६॥ हरिकथा, अध्यात्म-निरूपण, सगुण-भजन, ब्रह्मज्ञान, पिंडज्ञान, तत्वज्ञान, आदि सब कुछ विरता को जानना चाहिए॥३०॥ कर्म- मार्ग, उपासना-मार्ग, ज्ञान-मार्ग, सिद्धान्त-गार्ग, प्रवृत्ति-मार्ग और निवृत्ति मार्ग, आदि सब जानना चाहिए ॥३१॥ प्रेम की स्थिति, उदास-दशा,