पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२७

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दासबोध। [दशक २. योगस्थिति, ध्यानस्थिति, विदेहदशा, सहजस्थिति आदि सब बातें विरक्त को जानना चाहिए ॥ ३२॥ ध्वनि, लक्ष, मुद्रा, आसन, मंत्र, यंत्र, विधि, विधान और अनेक मतों का मर्म विरक्तव को जान लेना चाहिए ॥ ३३ ॥ विरत्तों को संसार-भर का मित्र होना चाहिये, उनको खतंत्र रहना चाहिये, तथा विचित्र और बहुगुणी होना चाहिये ॥ ३४ ॥ विरक्तों को विरक्त रहना चाहिए; चिरतों को हरिभक्षा होना चाहिए और विरक्तों को, अलिप्त रह कर, नित्यमुक्त बनना चाहिए ॥ ३५ ॥ विरक्तों को शास्त्रों का मथन करना चाहिए; नाना प्रकार के पाखंड-मतों का खंडन करना चाहिए और मुमुक्षुओं, अर्थात् मुक्ति चाहनेवालो, को शुद्धमार्ग में लगाना चाहिये ॥३६॥ विरतों को चाहिये कि शुद्धमार्ग बतलावें, संशय मिटावें और मनुष्यमात्र को अपना बना लेवें ॥३७॥ विरक्त लोग निन्दा करनेवालों की वन्दना करें, साधकों का प्रबोध करें और बद्ध जनों को मोक्ष-ज्ञान बतलाकर जागृत करें ॥ ३८ ॥ विरक्तों को चाहिये कि उत्तम गुण ले लें, अवगुण छोड़ दें और विवेक-बल से नाना प्रकार के अपाय या विघ्न दूर करें॥३६॥ इन उत्तम लक्षणों को एकाग्र मन से सुनना चाहिए और, विरक्त पुरुषों को इतकी अवहेलना न करना चाहिए ॥ ४०॥ ये उपर्युक्त लक्षण मैंने सहज स्वभाव ही से बतला दिये हैं। इनमें से जितने हो सके, ग्रहण कर लेना चाहिए । बहुत पतला दिये, इससे श्रोतागणों को उदास न होना चाहिए॥४१॥ परन्तु इस प्रकार के सुलक्षण न लेने से कुलक्षणता आ जाती है और पढ़तमूर्खता पाने का डर रहता है ॥ ४२ ॥ अतएव, पढ़तमूर्ख के लक्षण भी अगले समास में कहे गये हैं। सावधान होकर सुनिये ॥४३॥ दसवाँ समास-पढ़तमूर्ख के लक्षण । ॥ श्रीराम ॥ पिछले समास में वे लक्षण बताये गये कि जिनके ग्रहण करने से मूखौं में भी चतुरता आती है। अब, उनके लक्षण सुनो जो चतुर कहलाते हुए भी मूर्ख हैं ॥ १॥ ऐसे लोगों को पढ़तसूर्ख कहते हैं। उनके लक्षण सुन कर श्रोतागण दुःख न माने क्योंकि अवगुण छोड़ने से सुख मिलता है ! ॥२॥ जो बहुश्रुत और बुद्धिमान् होकर स्पष्ट ब्रह्मज्ञान बतलाता है और फिर भी दुराशा और अभिमान रखता है वह एक पढ़तमूर्ख है ॥ ३ ॥