पृष्ठ:दासबोध.pdf/१२८

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पढतमूर्ख के लक्षण। मुलावण्या को क्रिया का प्रतिपादन करते हुए जो सगुण भचि को मेटना चाहता है और स्वधर्म तथा साधनों की निन्दा करता है वह एक पढ़त- म है ॥ ४ ॥ अपने शातापन से जो सब को दोष लगाता है और सब के चिद्र ढूंढता है वह एक पढ़तमूर्ख है ॥ ५ ॥ शिष्य से यदि कोई अवज्ञा जाय या वह संकट में पड़ जाय तो जो पुरुष दुर्वचन कह कर उसका मन और भीदुःखी करता है वह भी एक पढ़तमूर्ख है ॥६॥ जो रजोगुणी हो, तमोगुग्गी हो, कपटी हो और अन्तःकरण का कुटिल हो, तथा जो वैभव देख कर बखान करता हो वह पढतमूर्ख है ॥ ७॥ सम्पूर्ण ग्रन्थ विना दये जो व्यर्थ के लिए दूपण लगाता है और गुणों को भी जो अवगुण की दृष्टि से देखता है वह एक पढतमूर्ख है ॥ ८॥ सव लक्षणों को सुन कर जो बुरा मानता हो, मत्लर से खटपट करता हो और जो नीतिन्याय के बर्ताव में उट हो वह एक पढ़तसूर्ख है ॥ ६॥ जो शातापन के अभि- मान का हट करता है, अपना शोध जो नहीं रोकता और जिसकी क्रिया और शब्द में अंतर है (अर्थात् कहता कुछ और है: करता कुछ और है), वह एक पढतमूर्ख है ॥ १० ॥ बिना अधिकार, वक्ता वन कर जो वक्तृता देने का परिश्रम करता है और जो कठोर वचन बोलता है वह एक पढ़तमूर्ख है ॥ ११ ॥ जो श्रोता अपने बहुश्रुतपन से, और वाचा- लता के गुण से, वक्ता में हीनता बतलावे वह एक पढतमूर्ख है ॥ १२ ॥ दृसरों को तो दोप लगाता है; पर जिसे यह नहीं मालूम है कि वही दोप स्वयं हममें भी हैं वह एक पढ़तमूर्ख है ॥१३॥ अभ्यास कर के सब विद्याएं तो जान ली है; पर लोगों को संतुष्ट करना नहीं जानता वह एक पढ़तमूर्ख है ॥ १४॥ जिस प्रकार हाथी स्पर्श-सुख के कारण जाल में फँसता है और पुष्परस के लोभ से भौंरा जैसे कांटों में फंस कर मरता है उसी प्रकार जो जानबूझ कर प्रपंच में फँसा हुआ है वह पढतमूर्ख है ॥ १५॥ जो स्त्रियों का साथ करता हो, उनसे अध्यात्म-निरूपण या ब्रह्म- ज्ञान की बातें करता हो (!) और जो निन्दनीय वस्तु का अंगीकार करता हो वह भी पढ़तमूर्ख है ॥ १६ ॥ जिससे शरीर में हीनता आती हो वही बात जो दृढ़ता से मन में धरता हो और जिसके पास देहबुद्धि हो अर्थात् इस तुच्छ देह ही को जो सर्वस्व समझता हो वह एक पढ़त- मूर्ख है ॥ १७ ॥ भगवान् को छोड़कर जो मनुष्य की स्तुति करता जिसको देखता है उसीकी कीर्ति वर्णन करने लगता है वह एक पढ़तमूर्ख है॥१८॥ स्त्रियों के अवयवों का जो वर्णन करता हो; नाना प्रकार के नाटकों और हावभावों का जो वर्णन करता हो और जो मनुष्य ईश्वर या