पृष्ठ:दासबोध.pdf/१३०

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28 पढतमूर्ख के लक्षण निखाता है, जो ब्रह्मनान ही की बातें करते रहता है और जो गोस्वामी कायर पराधीन है बह एक पढतमूर्ख है ॥ ३६॥ सम्पूर्ण भक्तिमार्ग को नोड़ता और जो इस प्रकार के काम करता है जिनसे स्वयं उसीकी जाति नो बन एक पढतमूर्ख है ॥ ३७ ॥ जिसके हाथ का प्रपंच गृतमयी ) चला गया हो, और जिसमें परमार्थ का भी लेश न हो और में देयों और ब्राह्मणों का द्वेषी बन बैठा हो वह एक पड़तमूर्ख है ॥ ३८ ॥ गावगुण त्याग करने के लिए ये पढ़तसूर्ख के लक्षण बत्तला दिये । बुद्धि- मान श्रोता लोग न्यूनाधिक के लिए क्षमा करें ॥३६॥ जो संसार में सुख मानते है ये परम भूखों में मुर्ख है: क्योंकि इस संसार-दुःख के समान और कोई दुःख नहीं है ॥ ४० ॥ उसी संसार-दुःख का आगे निरूपण किया गया है और यह बतलाया गया है कि गर्भवास में तथा जन्म लेने के बाद कैसे कैसे दारुण दुःख सहने पड़ते हैं ॥ ११ ॥