पृष्ठ:दासबोध.pdf/१३२

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X2 । रास] जन्म-दुःख-निरूपण। यह नर्क की वखारी भरी है; जो भीतर लिड़विड़ा रही है। दुर्गन्धित मृत का गड़ा इसमें जना है ॥ १८ ॥ भीतर नाना प्रकार के जन्तु, कीड़े और प्रांत भरी हैं और अनेक प्रकार की दुर्गन्धियों की पोटरी बँधी है। इसके भीतर घृणा उत्पन्न करनेवाली खाल बेतरह थलथला रही है । सम्पूर्ण अंगों में सिर श्रेष्टं समझा जाता है वहां से भी नाक द्वारा बतगम बहता है । कान फूटने पर जो दुर्गन्धि उठती है वह नहीं सही जाती ॥ २० ॥ आखों से चीपड़ निकलता है; नाक में गूजी भर जाती है और प्रातःकाल मुख से मल की सी वास आती है ॥ २१ ॥ जिस मुँह से लार, गूंक, सैल, पित्त और खखार आदि बहुत सी घृणोत्पादक चीजें निकता करती है उसे कहते हैं, कि कमल है और चन्द्रमा के समान है ! ॥ २२॥ मुख की तो यह बुरी हालत है और उधर पेट में भी विष्ठा भरा है । प्रत्यक्ष के लिए भूमंडल में कोई प्रमाण नहीं है! ("प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम् " )॥२३॥चाहे जितने उत्तम उत्तम पदार्थ खाये जाँयः परन्तु पेट में वे या तो विष्टा या वमन हो जाते हैं और चाहे परम पवित्र गंगाजल ही क्यों न पिये: पर वह भी मूत्र ही हो जाता है ! ॥ २४ ॥ अतएव मलमूत्र और धमनी देह का जीवन है-इन्हींसे देह बढ़ती है, इसमें कुछ भी संशय नहीं है ॥ २५ ॥ पेट में यदि मलमूत्र और ऑक (वमन ) न होते तो सब लोग मर जाते । चाहे राव हो, चाहे रंक हो, उसके पेट में विष्ठा रहता ही है ॥ २६ ॥ स्वच्छता के लिए यदि ये (विष्ठादि) निकाल डाले जाँय तो यथार्थ में यह देह पतन हो जायगा ॥ २७ ॥ जब यह शरीर निरोगी रहता है तब तो उसकी ऐसी दशा है; पर जब उसकी दुर्दशा होती है तब उसका क्या वर्णन किया जाय ? ॥ २८ ॥ वहुत विपत्तियों के साथ नौ महीने इस प्रकार के कारागृह ही में रहना होता है । नवों द्वार रुके रहते हैं-वहां हवा की गुंजायश कहां? ॥ २६ ॥ माता के पेट में वमन और नरक के रस झिर कर जठराग्नि के द्वारा तपते हैं और बालक का अस्थिमांस आदि सब उसीमें खोला करता है॥३०॥ जब बिना त्वचा का गर्भ खौलता है तब माता को उकौने (दोहद ) नाते हैं। कटु और तीक्ष्ण रसों के कारण बालक का सब शरीर तप जाता है ॥ ३१ ॥ जहां चमड़े की गठड़ी बँधी होती है। वहीं विष्ठा की थैली भी रहती है। वहां से वंकनाल-द्वारा बच्चे को रस पहुँचता रहता है ॥३२॥ विष्टा, मूत्र, वान्ति, पित्त तथा नाक और मुंह से निकलनेवाले जन्तुओं के कारण बालक का चित्त अतिशय व्याकुल होता है ॥ ३३ ॥ अस्तु । ऐसे कारागृह में प्राणी अत्यन्त बँधा हुश्रा पड़ा रहता है। तब