पृष्ठ:दासबोध.pdf/१३६

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समास २] स्यगुरण-परीक्षा। है। इस प्रकार शरीर में अनेक रोग होजाते हैं और अन्त में अच्छे पच्छे वैद्य और पंचाक्षरी (झाड़नेवाले) बुलाये जाते हैं ॥ ३१ ॥ उनमें से कोई कहता है, यह नहीं बचता; कोई कहता है, यह नहीं मरता-पाप के कारण यातनाएँ भोग रहा है ॥३२॥ अस्तु: इस प्रकार इधर गर्भ के 'भूला ही था कि उधर त्रिविध तापी से तप्त होता है और संसार-दुःख से प्राणी बहुत दुःखित होता है ॥ ३३ ॥ इतना होने के बाद भी यदि वत्र गया तो मार कृट कर सांसारिक कामों के लिए चतुर बनाया जाता इसके बाद मा-चाप, प्रेम के कारण, शीघ्र ही विवाह की बात चीत शुरू करते हैं और सब प्रकार का वैभव दिखाकर कन्या निश्चित करते हैं ॥३५ । बरात का वैभव देख कर लड़के को बड़ा सुख होता है और विवाह हो जाने पर उसका मन ससुराल में रंग जाता है ॥ ३६॥ मा बाप चाहे जैसे रहै, परन्तु ससुराल में वह बनठन कर ही जाता है । यदि पास में द्रव्य नहीं होता तो व्याज से ऋण ले लेता है ॥ ३७॥ मा वाप को एक और छोड़ कर ससुराल वालों ही पर अधिक प्रेम रखता है। उनकी समस के अनुसार मानो माचाप कष्ट ही सहने के लिए बनाये गये हैं ॥ ३८॥ इसके बाद. दुलहिन के घर में आने पर, उसका हौसला बहुत बढ़ जाता है-यह बड़ा प्रसन्न होता है और कहता है कि अब मेरे समान दूसरा कोई भी नहीं है ॥ ३६॥ स्त्री के न देख पड़ने पर मा-बाप, भाई-बहन, सव कुछ उसे सूना मालूम होता है-अविद्या के कारण भूल कर वह केवल स्त्री में ही मोहित हो जाता है ॥ ४० ॥ संभोग न होने पर ही इतना प्रेम बढ़ता है, परन्तु स्त्री के योग्य होने पर वह मर्यादा का उल्लंघन करता है। दोनों परस्पर प्रेम बढ़ाते हैं-प्राणी काम में फंस जाता है ॥४१॥ यदि एक क्षणभर भी स्त्री को आंखों से नहीं देखता तो जी उतावला हो जाता है। प्यारी स्त्री ही मन को श्राकर्पित कर लेती है ॥ ४२ ॥ कोमल कोमल मंजुल शब्द, मर्यादा, लज्जा, मुखकमल, और तिरछी नजर ये ग्राम्य मनोवृत्ति की फँसावटें हैं ॥ ४३ ॥ इनके कारण प्रेस ..का उछाह सम्हाला नहीं जाता, शरीर की व्याकुलता रोकी नहीं रुकती, दुसरे व्यवसाय में मन नहीं लगता, उदास मालूम होता है ॥ १४ ॥ व्यवसाय तो बाहर हो रहा है और मन घर में धरा है-क्षण क्षण पर हृदय में कामिनी का स्मरण हो पाता है ॥ ४५ ॥ तुम तो हमारे प्राणों के प्राण हो, ऐसा कहते हुए स्त्री, अत्यन्त मोह दिखला कर, सारा चित्त चुरा लेती है ॥ ४६ ॥ जिस प्रकार ठग लोग पहचान निकाल कर . 55 7