पृष्ठ:दासबोध.pdf/१३८

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स्त्रगुण-परीक्षा। . तीसरा समास-स्वगुण-परीक्षा । ( दूसरे विवाह से दुर्दशा और सन्तानोत्पत्ति । ) ॥ श्रीराम ॥ दसरा विवाह हो जाने से पिछला दुःख सब भूल जाता है और सुख मद कर फिर गृहस्थी में फँसता है ॥ १॥ अत्यन्त कृपण बन जाता है- टभर अन्न नहीं खा सकताः पैसे के लिए प्राण तक छोड़ने को तैयार हो जाता है !२॥ कभी, कल्पान्त में भी, खर्च नहीं करना चाहता, जद हुए ही को फिर जोड़ता है, हृदय में सद्वासना विलकुल ही नहीं है॥३॥ स्वयं धर्म नहीं करता, धर्म करनेवालों को भी रोकता है, और साधुजनों की सदा निन्दा करता है ॥ ४ ॥ तीर्थ नहीं जानता; व्रत नहीं जानताः अतिथि-अभ्यागत नहीं जानता-चीटी के मुख के सीत भी चुन कर संचित करता है ॥ ५॥ स्वयं पुण्य कर नहीं सकता, कोई करता भी है तो उसे देख नहीं सकता: दूसरे का पुण्य उसके मन में नहीं भाता है. इस लिए वह प्रशंसा के बदले उलटे उसकी हँसी करता है॥ ॥ देवों और भक्तों का खंडन करता है, शारीरिक बल से सब को दुःख देता है और निष्ठुर शब्द कह कर प्राणिमात्र के अन्तःकरण को भेदता है ॥ ७ ॥ नीति को छोड़ कर अनीति से बर्ताव करता है और सदा गर्व ले ला रहता है ॥ ८ ॥ पूर्वजों को धोखा देता है, श्राद्ध भी नहीं करता और कुलदेवता को किसी न किसी तरह उगता है ॥६॥ अपनेको जो भोजन करना है उसकी देवता को नैवेद्य लगा देता है और ब्राह्मणभोजन की जगह पर, महमानी में आये हुए, साले को खिला देता है ! ।। १० ॥ हरिकथा कभी नहीं अच्छी लगती, ईश्वर की उसे कुछ भी परवा नहीं है, स्नान-संध्या को व्यर्थ बतला कर कहता है, क्यों की जाय? ॥ १९ ॥ कामनाओं में पड़ कर वित्त संचय करता है, अनेकों के साथ विश्वासघात करता है और तरुणाई के मद में मतवाला होकर उन्मत्त हो जाता है ॥ १२ ॥ भरी तरुणाई में होने के कारण अव धीरज नहीं धरा जाता और जो न करना चाहिये वही महापाप करता है ॥ १३॥ जिस स्त्री के साथ विवाह किया वह छोटी निकल गई और इधर धीर धरा ही नहीं जाता अतएव विषय प्रेम में फंस कर परस्त्री-गमन करता है ॥ १४ ॥ मा; बहिन नहीं विचारता; परद्वारी, अर्थात् परस्त्री-गमनी, बन कर पापी होता है । ८