पृष्ठ:दासबोध.pdf/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रस्तावना। लगते तव एकनाथखामी राणुवाई को यही आशीर्वाद देते कि, तुम्हारी कुक्षि से दो महात्मा पुत्र उत्पन्न होंगे । इस वर्ष, समर्थ रामदासस्वामी का जन्म होने पर, सूर्याजीपन्त कुटुम्ब- सहित फिर उनके दर्शन को गये। एकनाथमहाराज ने अपने यहाँ कई दिन तक रखकर उनका अतिथि-सत्कार किया और उनके विदा होते समय वे यह भविष्यद्वाणी, सूर्याजीपन्त और राणुचाई को सम्बोधन करके, चोले, तुम धन्य हो; तुम्हारी कुक्षि धन्य है; और तुम्हारा वंश भी धन्य है ! तुम्हारी उपासना और भक्ति अनुपम है, इसी लिए हनुमानजी के अंश से यह चालक तुम्हारे यहाँ उत्पन्न हुआ है । शिव के अंश से एक प्रसिद्ध छत्रपति राजा महाराष्ट्र में अवतीर्ण होने वाला है। उसके द्वारा तुम्हारा यह पुत्र भूभार हरण करेगा और जनोद्धार करेगा । हमारे प्रारम्भ किये हुए धर्मकार्य की सम्पूर्णता इसीके हाथ में है। अव हम अपना अवतार समाप्त करने वाले हैं। " यह भविष्यद्वाणी कहने के कुछ ही दिन चाद एकनाथमहाराज का निर्वाण हुआ। वाल्यावस्था, विद्याभ्यास और मंत्रोपदेश । समर्थ वालपन में सदा प्रसन्नचित्त और हास्यवदन रहते थे। रोना तो वे कभी जानते ही न थे । वे बहुत शीघ्र बोलने और चलने लगे थे । शरीर सुदृढ़ और तेजस्वी था। वे बड़े नटखट और उपद्रवी थे। सदा खेलकूद में निमग्न रहते और क्षणभर भी एक स्थान में न रहते थे। चपलता उनके रोम रोम में भरी हुई थी। वानर की तरह यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ फिरते रहना और अपने साथ के लड़कों को मुंह विगाड़ कर चिराना और चिढ़ाना भी उनका एक खेल था। उनके माता पिता ने जब देखा कि, ये बहुत उपद्रव करते हैं तव उन्होंने बाल समर्थ को भैयाजू के यहाँ पढ़ने को बैठा दिया; पर भैयाजू के यहाँ उस समय जितनी शिक्षा दी जाती थी उतनी शिक्षा का ज्ञान उन्होंने थोड़े ही दिनों में कर लिया और फिर इधर उधर खेलने कूदने लगे। गाँव के लड़कों को साथ लेकर गोदावरी के किनारे जाते और वहाँ वृक्षों पर, वन्दर की तरह, चढ़ जाते । एक डाल पर आना तो उन्हें बहुत सहज था। कभी कभी वे किसी बड़े वृक्ष की चोटी पर चढ़ कर उसे हिलाते थे। वृक्षों के फल स्वयं तोड़ कर खाते और अपने साथियों को खिलाते थे । कभी कभी वे वृक्ष के ऊपर ही से, नीचेवाले लड़कों को फलों की गुठलियाँ फेंक फेंक कर मारते थे । वृक्ष पर चढ़ने का उनका साहस देख कर सब लोग आश्चर्य करते । उनके साथी तो, उनको, वृक्ष पर चढ़ कर डाल हिलाते हुए देख कर, बहुधा चिल्लाया करते कि, " अरे ! अब यह गिरा-गिरा-गिरा !" पानी में ऊँचे पर से कूदना और तैरना भी उन्हें बहुत पसन्द था। इस प्रकार वे गाँव के बाहर खेला करते थे। इसके सिवा, जितनी देर चे गाँव में रहते उतनी देर भी उनका यही हाल रहता था। कभी इस छप्पर पर से दीवार पर कूदते और कभी किसी वृक्ष पर से किसी के घर में कूद पड़ते ! सारांश, उनकी बाललीला देख कर यदि लोग उन्हें हनुमानजी का अवतार समझते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं । बहुत लोग समझते हैं कि जो लड़के बहुत