पृष्ठ:दासबोध.pdf/१४५

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दासबोध। [दशक ३ होती है, पुत्र उसे देख नहीं सकते, इधर पति अशा होकर वृद्ध हो जाता है ! ॥ १५ ॥ पुत्र सदा झगड़े मचाये रहते हैं, कोई किसीकी नहीं सुनता और वह प्राणी स्त्री ही पर अधिक प्रीति रखता है ॥ १६ ॥ मन में सन्देह सवार होता है, कोई एक विचार स्थिर नहीं होता, अतएव पंचों को एकत्र करता है ॥ १७॥ पंच जो बाँट करते हैं उसे पुत्र नहीं मंजूर करते, इस कारण निबटारा होता ही नहीं, और अंत में झगड़ा शुरू होता है ॥ १८ ॥ बाप-बेटों में झगड़ा होता है, लड़के वृद्ध वाप को सारते हैं तब माता चिल्लाती है ॥ १६ ॥ उसका चिल्लाना सुन कर लोग जमा होते हैं, खड़े खड़े तमाशा देखते हैं और कहते हैं कि “वाह भाई! वाप के लिए बेटे तो खूब काम आये ! ॥ २० ॥ जिनके लिए अनेक मान- गंन किये गये, जिनके लिए बहुत से उपाय किये; देखो, वही पुत्र पिता को मारते हैं!" ॥२१॥ पापी कलियुग की यह लीला देख कर सब आश्चर्य करते हैं और उस लड़ाई को बन्द करवाते हैं ॥ २२॥ फिर पंच लोग वैठकर बरावर बराबर बाँट कर देते हैं, तव कहीं बाप-बेटों का झगड़ा मिटता है ! ॥२३॥वाप को अलग करके झोपड़ा बाँध देते हैं ।अव स्त्री का मन स्वार्थबुद्धि में फँसता है ॥ २४ ॥ अव तरुण पत्नी और बृद्ध पति का सम्बन्ध आ पड़ता है ! दोनों खेद छोड़ कर आनन्द मानते हैं ! ॥ २५ ॥ सुन्दर, गुणवान् और चतुर स्त्री पाकर कहता है कि बुढ़ापे में मेरा बड़ा भाग्य हुआ ! ॥ २६ ॥ इसी आनन्द में आकर सब दुख भूल जाता है। इतने में बलवा मचता है और परचक्र (शत्रुसमूह ) आ जाता है! ॥२७॥ अकस्मात् धावा होता है, बदमाश लोग आ कर स्त्री को कैद कर ले जाते हैं और प्राणी की चीज-वस्त भी उठा ले जाते हैं!* ॥२८॥ इससे अत्यन्त दुःखित होकर वह जोर जोर से रोने लगता है और मन ही मन सुन्दरी और गुणचान स्त्री की याद करता है ॥ २६ ॥ इतने ही में कोई आकर यह खबर देता है कि " तुम्हारी स्त्री भ्रष्ट होगई !" यह खबर सुन कर वह पृथ्वी पर गिर पड़ता है ! ॥ ३०॥ मूर्छा के कारण लोट पोट हो जाता है, आखों से आंसू बहने लगते हैं और स्त्री की याद आते ही चित्त दुःखालि से जलने लगता है ।। ३१ ॥ कहता है कि "जो द्रव्य कमाया वह भी विवाह में खर्च होगया । रही स्त्री, उसको भी दुराचारी पकड़ ले गये ! ॥३२॥ मुझे भी बुढ़ापा

  • ऐसी घटनाओं से उस समय की ऐतिहासिक दशा का अच्छा अनुमान किया जा

सकता है।