पृष्ठ:दासबोध.pdf/१४८

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. समास ६] श्राव्यात्मिक ताप! हो जाय ॥ ११ ॥ इस पर बना 'जी हां' कह कर निरूपण करता है। अब, पहले सावधान होकर आध्यात्मिक ताय सुनिये ॥ १२॥ देह, इन्द्रियों और मन के योग से अपनेको जो सुख-दुख का अनुभव होता है उसको आध्यात्मिक ताप कहते हैं ॥१३॥ जो दुख देह से उत्पन्न हों, अथवा जो दुख इन्द्रियों के कारण से हों, या जो मन से उत्पन्न हों उन्हें आध्यात्मिक कहते हैं ॥ १४ ॥ अव देह से, इन्द्रियों से और मन से जो दुःख होते हैं उनका अलग अलग खुलासा करना चाहिए ॥ १५ ॥ खाज, चाईचुई, फुन्सी, नसफोड़, देवी, मोतियादेवी आदि देह में उत्पन्न होनेवाले विकार आध्यात्मिक ताप है॥१६॥ कँखवारी, बालतोड़, चकत्ता, कालाफोड़ा और दुःसह मूलव्याधि की व्यथा-ये छाध्यात्मिक ताप हैं ॥१७॥ अंगुली की गांठ पर का फोड़ा, गलफुल्ला, वाहियात खुजली, मसूड़े का सूजना, दांतों में दर्द होना, आदि रोगों का नाम आध्यात्मिक ताप है ॥१८॥ यों ही फोड़ा उठना, या शरीर सूज जाना, वात होना और चिलक उठना, आदि आध्यात्मिक ताप हैं ॥ १६ ॥ दाद या गजकर्ण होना, पेट फूलना या बढ़ जाना, तालू बैठना, कान फूटना श्रादि तापों का नाम आध्यात्मिक ताप है ॥ २० ॥ स्वेत कृष्ट, गलित कुष्ट, पांडुरोग और क्षय- रोगों के कष्ट का नाम आध्यात्मिक ताप है ॥ २१ ॥ गठिया वात, लड़कों के दूध ओंकने का कष्ट, बायगोला, हाथ-पैर की ऐंठन, समय समय पर भौंरेटा भाना, आध्यात्मिक ताप है ।। २२ ॥ मलमूत्र आदि नांधने से जो रोग होता है वह, वर्त, पेटशूल, आधाशीशी दर्द, आदि रोगों को प्राध्या- त्मिक ताप कहते हैं ॥२३॥ कमर और गर्दन दुखना, पीठ, ग्रीवा, मुख और अस्थिसंधियों का दुखना आध्यात्मिक ताप है ॥ २४ ॥ अजीर्ण की मरोड़, अजीर्ण से दस्त और चमन होना, कँवल (नेत्र पीले होजाना), मुँहासे, नकफोड़, विदेश का पानी लगना, आदि रोगों की आध्यात्मिक तापों में गिनती है ॥ २५ ॥ जलशोष, जूड़ी, धुमनी होकर अंधियारा देख पड़ना स्वर, रोमांच होना, आदि का नाम आध्यात्मिक ताप है ॥ २६ ॥ जाड़ा, गर्मी, प्यास, भूख, नींद और दिशा लगना तथा विषयतृष्णा से दुर्दशा होना आध्यात्मिक ताप है ॥ २७ ॥ आलसी, मूर्ख, अपयशी होना, मन में भय पैदा होना,दिन-रात दुश्चित्त और विस्मरणी होना,आध्यात्मिक ताप हैं ॥२८॥ मूत्रावरोध, प्रमेह, रक्तपित्त, रक्तप्रमेह, पेट में विष्ठा के गोटे पड़ना, श्रादि आध्यात्मिक ताप हैं ॥ २६ ॥ मरोड़, दस्त, गर्मी से पेशाब में दर्द, दिशा रुक जाने से कष्ट अथवा कोई अनजान व्यथा, ये सब आध्यात्मिक ताप हैं ॥३०॥ आंतों के इधर उधर हिल जाने से दर्द होना, पेट में जंतु, आँव