पृष्ठ:दासबोध.pdf/१५०

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समास ७] श्राधिभौतिक ताप। चट्टा पड़ना, (लिलोसी) लहासुन, बितौरी (मास का गोला), मसा, मत में भ्रमिष्ट होना, आदि आध्यात्मिक ताप है ॥ ५० ॥ नाना प्रकार की सूजन और गुल्मा, शरीर में दुर्गन्ध बढ़ना, लार टपकना- इनका नाम प्राध्यात्मिक ताप है ॥ ५१ ॥ नाना प्रकार की चिन्ता से काला होना अनेक प्रकार के दुखों में चित्त की जलन, विना व्याधि के घबड़ाहट, प्रादि, आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ५२ ॥ बुढ़ापे की श्रापदाएं, सदा नाना रोग होना, सदा देह क्षीण रहना आध्यात्मिक ताप है ॥ ५३ ॥ अनेक व्याधियां, नाना प्रकार के दुःख, सब प्रकार के भोग, अनेक फोड़ा और प्राणी का शोक में तड़फड़ाना आध्यात्मिक ताप है ॥ ५४॥ अस्तु । पूर्वपापों के कारण प्राणी को आध्यात्मिक सन्ताप मिलते हैं। संसार में आध्यात्मिक तापों का अथाह सागर ही भरा है; कहां तक इसका वर्णन किया जाय? ॥५५॥ अतएव श्रोताओं को इतने ही से श्राध्या- त्मिक तापों का स्वरूप समझ लेना चाहिए । अव आगे आधिभौतिक तापों का वर्णन करते हैं ॥ ५६ ॥ सातवाँ समास-आधिभौतिक ताप । ( चराचर भूतों से दुःख मिलना।) ।। श्रीराम ॥ पिछले समास में आध्यात्मिक ताप के लक्षण बतलाये जा चुके । अब, आधिभौतिक ताप बतलाते हैं ॥ १ ॥ सारे चराचर भूतों (जीवों) के संयोग से जो सुखदुख होता है उसे आधिभौतिक ताप कहते हैं ॥२॥ अव इसका खुलासा करने के लिए इसके विस्तृत लक्षण बतलाते हैं:- ॥३॥ ठोकर लग कर पैर टूटना, कांटा चुभना, शस्त्र से घाव होना, शरीर में फाँस, या कांस चुभ जाना, आधिभौतिक ताप हैं ॥ ४॥ किसी दाहक पत्ती या खजहरा का अचानक शरीर में लगना और वर्र का काटना आधिभौतिक ताप है ॥ ५ ॥ मक्खी, गौ-मक्खी, (वग्धी) मधु- मक्खी, चीटी, और डांस का काटना, जोक लगना आधिभौतिक ताप है ॥ ६ ॥ पिस्सू, बेबुत, चीटे, खटमल, भौरा, किलौनी श्रादि जीवों से जो कष्ट मिलता है वह आधिभौतिक ताप है ॥ ७ ॥ कनसिराई, सांप, बीछी, बाघ, भेड़िया, सुअर, स्थाही, साँबर आदि जन्तुओं से जो कष्ट मिले वह आधिभौतिक ताप है ॥ ८॥ नीलगाय, अरना भैंसा, रीछ, जंगली