पृष्ठ:दासबोध.pdf/१५२

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समास ७ ७] आधिभौतिक ताप। ७१ यह आधिभौतिक ताप है ॥ २७ ॥ कान नाक छेद डालना, जबरदस्ती पकड़ कर गोदना, काम बिगड़ जाने पर दागना श्राधिभौतिक ताप है ॥ २८ ॥ किसी स्त्री को बदमाश लोग पकड़ कर नीच जाति को दे डालते हैं और दुर्दशा होकर उसका प्राण जाता है, यह आधिभौतिक ताप है ॥ २६ ॥ रोग होने पर वैद्य लोग अनेक कटु ओषधियां जबरदस्ती पिलाते हैं और झाड़-क करनेवाले अनेक दुःख देते हैं-ये आधिभौ- तिक ताप हैं ॥ ३०-३१॥ अनेक वेलों के कटु रस, कर्कश और असह्य काढ़ा, और गाढ़ा रस पीने से जो घबड़ाहट आती है वह श्राधिभौ- तिक ताप है ॥ ३२ ॥ जुलाव और वमन कराते हैं, कठिन पथ्य बतलाते हैं, और अनुपान भूल जाने पर विपत्ति होती है-यह आधिभौतिक ताप है ॥ ३३ ॥ शस्त्र से चीरकर रस निकालने से और दहकते हुए लोहे से दागने पर जो कष्ट होता है उसे आधिभौतिक ताप कहते हैं ॥ ३४॥ अकौड़ा और भिलावा लगाते हैं; नाना दुखों से घबड़ा देते हैं, नसे तोड़ते हैं, जोक लगाते हैं इनका नाम आधिभौतिक ताप है ॥ ३५ ॥ बहुत से रोग हैं और उनकी औपधे भी बहुत हैं-वतलाई जाये तो अपार और अगाध हैं। उनके खेद से जो प्राणी को दुख होता है उसका नाम आधिभौतिक ताप है ॥ ३६ ॥ पंचाक्षरी (झाड़ने-कनेवाला मांत्रिक) धुंए की मार देता है और नाना प्रकार की यातनाएं देता है, यह आधिभौतिक ताप है ॥ ३७ ॥ चोर लोग डाके डाल कर लोगों को यातना देते हैं, यह आधिभौतिक ताप है ॥ ३८ ॥ अग्नि लगने के कारण सुन्दर भन्दिर, रत्नों के भांडार और दिव्य तथा मनोहर वस्त्र, नांना प्रकार के धन-धान्य, पदार्थ, पशु, पात्र, और मनुष्यों के भस्म होने से जो कष्ट होता है वह प्राधिभौतिक ताप है।३६-४॥आग लग जाने के कारण धान्य, ईख, आदि की खड़ी फसल जल जाने से जो संताप होता है वह भी आधिभौतिक है ॥ ४२ ॥ स्वयं लगी हुई या किसी दूसरे के द्वारा लगाई हुई अग्नि की अनेक दुर्घटनाएं हो जाती हैं। उनसे प्राणी को जो दुख और चिन्ता होती है उसे आधिभौतिक ताप कहते हैं ॥४३-४४॥ कोई पदार्थ खो जाय, भूल जाय, गिर जाय, नाश हो जाय, लापता हो जाय, फूट जाय, छूट जाय या किसी तरह से भी अलभ्य हो जाय और उससे जो कष्ट हो वह आधिभौतिक ताप है ॥ ४५ ॥ प्राणी स्थानभ्रष्ट हो गये हों, नाना प्रकार के पशु कहीं रह गये हों, कन्या पुत्र वेपते हो गये हों-इन कारणों से जो संताप हो वह आधिभौतिक है ॥४६॥ चोर अथवा दावीदार मनुष्य अचानक मार डालते हैं, घर लूट become