पृष्ठ:दासबोध.pdf/१५५

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७४ दासबोध। [ दशक ३ मनुष्य को एक कोठरी में बन्द करके उस विलार के द्वारा कटपूर्वक मनुष्य को मरवा डालना, अथवा फाँसी लगा देना या और नाना प्रकार के कष्ट देना आधिभौतिक ताप है ॥ ७६ ॥ कुत्ते के द्वारा नाश होना, बाघ से नाश होना, भूत से नाश होना, बड़ियाल के द्वारा मारा जाना, शस्त्र से मारा जाना अथवा बिजली गिरने से मरना आधिभौतिक ताप है ॥ ७७ ॥ नसें खींच लेना, पलीता लगाकर जलाना आदि अनेक विप- त्तियां आधिभौतिक ताप हैं ॥ ७८ ॥ मनुष्य की हानि, धन की हानि, वैभव की हाति, महत्त्व की हानि, पशु की हानि और पदार्थ की हानि को प्राधिभौतिक ताप कहते हैं ॥ ७६ ॥ बचपन में मा मर जाय, जवानी में स्त्री मर जाय और बुढ़ापे में लड़के लड़की मर जायें तो यह आधिभौ- तिक ताप है ॥२०॥ दुख, दरिद्र, ऋण, विदेश भगना, लुट जाना, आपदा आना, और कुत्सित अन्न का भोजन, आधिभौतिक ताप हैं ॥८॥ महामारी होना, युद्ध में हारना, और अपने प्यारे जनों का क्षय होना आधिभौतिक ताप है ॥ १२॥ कठिन समय और अकाल पड़ना, शंकित होना और बुरा समय श्राना, उद्वेग और चिंता में पड़ना आधिभौतिक ताप है ॥८३॥ कोल्हू और चरखी में पड़ जाना, चाक के नीचे दब जाना या नाना प्रकार की आग में गिर जाना आधिभौतिक ताप है ॥४॥ अनेक शस्त्रों से विद्ध हो जाना, नाना प्रकार के बनैले जन्तुओं के द्वारा खाया जाना और नाना बन्धनों में पड़ना आधिभौतिक ताप है ॥५॥ अनेक कुवासों से घबड़ाना, अनेक अपमानों से लजाना और शोकों से प्राणी का कटित होना आधिभौतिक ताप है ॥६॥ इस तरह, अगर बतलाये जायें तो आधिभौतिक ताप के भी अनन्त पहाड़ हैं । परन्तु श्रोता लोगों को इतने ही से समझ लेना चाहिए ॥८॥ आठवाँ समास-आधिदैविक ताप । ( यम-यातनाएं।) ॥ श्रीराम ॥ पहले आध्यात्मिक ताप बतलाया गया, उसके बाद आधिभौतिक; .. अब, आधिदैविक बतलाते हैं, सो सावधान होकर सुनिये ॥१॥ मनुष्य शुभ-अशुभ कर्म से, देहान्त होने पर, जो यमयातना तथा स्वर्ग या नरक आदि, नाना प्रकार से, भोग करता है उसका नाम आधिदैविकं ताप है ॥२॥ मदांध होकर अविवेक से मनुष्य अनेक दोष और नाना प्रकार के पातक करता है, परन्तु वे अन्त में दुखदायक बन कर यमयातना का