पृष्ठ:दासबोध.pdf/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

190 समास ९] मृत्यु-निरूपण। की मार होने पर कोई सहारा नहीं दे सकता, आगे पीछे सब की कूटा- कृटी होती ही है ॥ ५॥ मृत्युकाल एक ऐसी अच्छी लाठी है जो बलवान् की भी खोपड़ी पर बैठती है। बड़े बड़े राजा-महाराजा और बड़े बड़े बलवान् योद्धा भी बच नहीं सकते ॥६॥ मृत्यु नहीं जानती कि यह क्रूर है, मृत्यु नहीं जानती कि यह पहल- वान है, मृत्यु यह भी नहीं जानती कि यह समरांगण में संग्राम करने- वाला शूर पुरुप है ॥ ७॥ मृत्यु नहीं जानती कि यह क्रोधी है और न वह यही जानती है कि यह प्रतापी है। वह यह भी नहीं जानती कि यह उन-रूपवाला महा खल है ॥ ८॥ मृत्यु नहीं कहती कि यह बलाढ्य है और न वह यही समझती है कि यह धनवान् है । सर्वगुण सम्पन्न पुरुष को भी मृत्यु कोई चीज नहीं समझती ॥ ६॥ विख्यात पुरुष, श्रीमान् पुरुष और महा पराक्रमी पुरुप को भी मृत्यु नहीं छोड़ती ॥१०॥ सामान्य राजा, चक्रवर्ती राजा और करामात दिखलाने वाले को भी मृत्यु कुछ नहीं समझती ॥ ११ ॥ अश्वपति, गजपति, नरपति श्रादि किसीकी भी मृत्यु परचा नहीं करती ॥ १२ ॥ लोकमान्य, राजनीतिज्ञ और चेतनभोक्ता पुरुषों को भी मृत्यु नहीं बचने देती ॥ १३ ॥ तहसीलदार, व्यापारी और बड़े बड़े मस्त राजाओं को भी मृत्यु कोई चीज नहीं समझती ॥ १४ ॥ मृत्यु को यह भी खयाल नहीं है कियह मुद्राधारी है, न वह यही जानती है कि यह उद्योगी है, वह परनारी और राजकन्या को भी नहीं छोड़ती ॥ १५॥ मृत्यु कार्य-कारण नहीं जानती, वह वर्ण-अवर्ण भी नहीं सम- झती और न कर्मनिष्ट ब्राह्मण ही पर कुछ दया करती है ! ॥१६॥ व्युत्पन्न, अर्थात् बुद्धिमान् पुरुष पर भी मृत्यु दया नहीं दिखलाती, सब तरह से सम्पन्न और विद्वान् पुरुप का भी वह विचार नहीं करती । जिसके हाथ में लोगों का बड़ा समुदाय है उसे भी मृत्यु नहीं वचने देती ! ॥ १७ ॥ धर्त, ( चतुर सभ्य) बहुश्रुत और महा भले पंडित का भी मृत्यु कुछ विचार नहीं करती ॥ १८ ॥ पौराणिक, वैदिक, याज्ञिक और ज्योतिषी को भी मृत्यु उठा ले जाती है ॥ १६ ॥ अग्निहोत्री, श्रोत्रिय, मांत्रिक, यांत्रिक और पूर्णागमी पुरुपों पर भी मृत्यु दया नहीं दिखलाती ॥ २० ॥ मृत्यु यह नहीं समझती कि यह पुरुप शास्त्रज्ञ है, वेदज्ञ है अथवा लर्वज्ञ है ! ॥२२॥ ब्रह्महत्या, गोहत्या, बालहत्या, स्त्रीहत्या, आदि, किसी प्रकार की भी हत्या, का मृत्यु विचार नहीं करती ॥२२॥ रागज्ञानी, तालज्ञानी और तत्ववेत्ता को भी वह नहीं छोड़ती ॥ २३ ॥ योगाभ्यासी और सन्यासियों का भी मृत्यु विचार नहीं करती और काल को धोखा देने-