पृष्ठ:दासबोध.pdf/१६४

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समास १० वैराग्य-निरूपण। । सारा जीवन बेच देना होता है-फिर जिस परम पिता परमात्मा ने यह जीवन दिया है उसको क्यों भूलना चाहिए ? ॥५४-५५॥ दिन रात जिस ईश्वर को सब जीवों की चिन्ता लगी रहती है तथा जिसके प्रताप से मंध दरलता है और समुद्र मर्यादा से रहता है ॥ ५६ ॥ जिसके प्रताप ले शेष पृथ्वी को धारण किये है; सूर्य प्रगट होता है और, इस प्रकार, जो सारी सृष्टि सत्तामात्र से चला रहा है ॥ ५७ ॥ वह देवाधिदेव-महा- देव-बड़ा. दयालु है; उसकी लीला कोई नहीं जानता; वह कृपापूर्वक लारे जीवों की रक्षा करता है ॥ ५८ ॥ ऐसा जो सर्वात्मा 'श्रीराम' है उसे छोड़ कर जो विषयकामना रखते हैं वे प्राणी दुरात्मा और अधम हैं-अपने किये का फल पाते हैं ! ॥५६॥ राम के विना जो आशा की जाती है वह निराशा ही समझो । 'मेरा मेरा' कहने से सिर्फ कष्ट ही होता है! ॥६॥ जिसे कष्ट उठाने की चाह हो वह खुशी से विषयों का चिन्तन करते रहे! विषयों का हाल तो यह है कि उनके न मिलते ही जी बहुत घबड़ाने लगता है ॥ ३१ ॥ शानन्दधन राम को छोड़ कर जिसके मन में विषय-चिन्तन रहता है उस विपयासत पुरुप को समाधान कैसे मिल सकता है ? ॥ ६ ॥ जो चाहता हो कि मुझे सदा सुख ही रहे वह राम के भजन में तत्पर हो और कुटुम्वीजन,जो दुःख के मूल हैं, उन्हें छोड़ दे! ॥६॥वासना ही के कारण सारे दुःख मिलते हैं, इस लिए जो विषय-वासना त्याग देता है वही एक सुखी है ॥६४ा विषय से उत्पन्न हुए जितने सुख हैं उनमें परम दुख भरा है। उनका नियम है कि पहले वे मोटे लगते हैं, परन्तु पीछे से उनके कारण शोक ही होता है ॥ ६५ ॥ जिस प्रकार बंसी लीलते में तो मछली को सुख मालूम होता है; पर उसके खींच लेने में गला फट जाता है, अथवा जिस प्रकार चारा लेकर दौड़ते हुए बिचारा हिरन फँस जाता है उसी प्रकार की विषय-सुख की मिठाई है। यद्यपि वह मीठी मालूम होती है; परन्तु है वह वहुत कडू ! इसी लिए कहते हैं कि, 'राम' में प्रीति रखो॥६६-६७॥ यह सुन कर भाविक शिष्य कहता है:-" हे स्वामी, अब ऐसा उपाय बताओ कि जिससे यह जन्म सुफल हो और यम-लोक-छूटे ॥ ६८ ॥ हे महाराज-! परमात्मा कहां है और वह मुझे कैसे मिले ? और यह दुख का मूल जो संसार है वह कैसे छूटे? ॥ ६६॥ हे कृपामूर्ति! मुस दीन को ऐसा उपाय वताइये जिससे निश्चय करके भगवान् मिले और अधोगति दूर हो" ॥ ७० ॥ वक्ता कहता है कि, "भाई ! अनन्य होकर भगवान् का भजन करना चाहिये-इससे सहज ही समाधान होगा" ॥७१ ॥ "भग-