पृष्ठ:दासबोध.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सनास २] कीर्तनमक्ति। करना चाहिए यही श्रवणभसिर के लक्षण हैं ॥३०॥ सगुण ईश्वर के चरित्र तथा निर्गुण के तत्त्व और यंत्र, ये दोनों बातें परम पवित्र है-इनको सुनते रहना चाहिए ॥ ३२ ॥ जयन्तियां, उपवास, नाना प्रकार के साधन, मंत्र, यंत्र, जप, ध्यान, कीर्ति, स्तुति, स्तवन और भजन नादि, नाना प्रकार से, “सुनना चाहिए ॥ ३२ ॥ इस प्रकार सगुण परमात्मा के गुणों का श्रवण, और निर्गुण के अध्यात्मनिरूपण का श्रवण करना चाहिए और भिन्नता छोड़ कर भाग का मूल हूँढ़ना चाहिए ॥ ३३ ॥ अव श्रोता लोग श्रवण- भाने का निरूपण समझ गये होंगे: अतएव, आगे अब कीर्तनभक्ति का लक्षण बतलाया जाता ॥३४॥ दूसरा समास-कीर्तनभक्ति। || श्रीराम ।। नवधा भक्ति में से श्रवण का निरूपण हो चुका, अव दूसरी कीर्तन- भक्ति सुनिये:-॥ १॥ सगुण परमात्मा के गुणों का कीर्तन करना चाहिये, और अपनी वाणी से जगत् में यथास्थित भगवान् की कीर्ति फैलाना चाहिए ॥२॥ बहुत से ग्रन्थ पढ़ना चाहिए और ग्रन्थों की बातें कंट करना चाहिए तथा भगवान् की कथा निरंतर कहते रहना चाहिए ॥३॥ अपने सुख-स्वार्थ के लिए हरि-कथा कहते ही रहना चाहिए-हरिकथा के बिना कभी न रहना चाहिए ॥ ४॥ नित्य नये उत्साह के साथ, हरि- कथा बढ़ाने में, अत्यन्त उद्योग करना चाहिए और हरिकीर्तन से सम्पूर्ण ब्रह्मांड भर देना चाहिये ॥५॥ अत्यन्त प्रेम और रुचि के साथ सदा सर्वदा हरिकीर्तन के लिये तत्पर रहना चाहिए ॥६॥ भगवान् को कीर्तन वहुत प्रिय है; कीर्तन से समाधान होता है। कलियुग में बहुत मनुष्यों को हरिकीर्तन ही तारता है ॥७॥ विविधि प्रकार के विचित्र ध्यान, अलंकार और भूपणों का वर्णन करना चाहिये और अंतःकरण में ध्यान- मूर्ति को ला कर कथा कहना चाहिये ॥ ८ ॥ प्रेम के साथ, परमात्मा का यश, कीर्ति, प्रतापं और महिमा वर्णन करना चाहिये, इससे भगवद्भक्तों की आत्मा संतुष्ट होती है ॥ ६॥ कथा, अन्वय, व्याख्या, करताल बजाते -हुए परमात्मा के नामों का घोष, और प्रसंगा पड़ने पर अनेक कल्पित बातें, तथा घटित हुई वातें, अच्छी तरह बतलानी चाहिए ॥ १०॥ ताल, मृदंग, हरिकीर्तन, संगीत, नृत्य, तान-मान और नाना प्रकार की कथाओं