पृष्ठ:दासबोध.pdf/१७०

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समास] स्मरणभनि। ऐसा ज्ञान बतलाना चाहिए जिससे सारे मनुप्य सदाचार में प्रवृत्त हो ॥ २५ ॥ अस्तु ! सद वाद-विवादों को छोड़ कर परमात्मा के गुणानुवाद का कीर्तन करना चाहिए-इसीका नाम है भगवद्भजन और यत्ती दूसरी ॥ २६॥ भगवान के गुणों का कीर्तन करने से बड़े बड़े पाप कट जाते हैं और उत्तम गति मिलती है । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि कीर्तन-भक्ति से अवश्य भगवत्याप्ति होती है ॥ २७ ॥ कीर्तन से वाणी पवित्र होती है, सत्पात्रता आती है और सारे मनुष्य सुशील, या सदा- चरणी, बनते हैं ॥२८॥ कीर्तन से मन की चञ्चलता जाती है, बुद्धि स्थिर होती है और श्रोता-वका, दोनों का, सन्देह दूर होता है ॥ २६ ॥ ब्रह्म- पुन नारदजी सदा सर्वदा हरिकीर्तन करते रहते, इसी कारण उन्हें स्वयं नारायण की पदवी मिली है॥३०॥ अतएव कीर्तन की महिमा अगाध है, कीर्तन से परमात्मा प्रसन्न होता है जहां भगवान् के गुणानु- वाद का कीर्तन होता है वहीं सारे तीर्थ, और स्वयं वह जगदात्मा; निवास करता है ॥ ३१ ॥ तीसरा समास-स्सरणभक्ति । ॥ श्रीराम ॥ पिछले समास में सब को पावन करनेवाली कीर्तनभक्ति का वर्णन किया, अब विष्णु-स्मरण नामक तीसरी भक्ति सुनियेः- ॥१॥ मन में ईश्वर का स्मरण करना चाहिए, उसके अनन्त नामों का, अखंड रीति से, जप करना चाहिए-नामस्मरण से समाधान मिलता है ॥२॥ नित्य-नियम के साथ, सुबह, दोपहर को, सन्ध्या-समय, और सदासर्वदा, अर्थात् अखंड, नामस्मरण करते रहना चाहिए ॥३॥ सुख, दुःख, उद्वेग और चिन्ता के समय अथवा आनन्दरूप होने पर, या किसी समय, भी, नाम- सरण के विना न रहना चाहिए ॥ ४॥ हर्ष के समय, दुख के समय, पर्च आदि का उत्सव करते समय, किसी शुभ-कार्य का प्रस्ताव करते समय, विश्राम के समय और निद्रा के समय नामस्मरण करना चाहिए ॥५॥ संकट के समय, गृहस्थी की अनेक झंझटों के समय, अघवा किसी दुर्दशा के आने पर, तुरन्त ही नामस्मरण करना चाहिए ॥६॥ चलते, बोलते, काम करते,खाते, पीते, सुखी होते, और नाना प्रकार के उपभोग भोगते समय भी परमात्मा का नाम न भूलना चाहिए ॥ ७॥ संपत्ति हो १२