पृष्ठ:दासबोध.pdf/१७२

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पादलेखनमकि। रण के लिए छोटे-बड़े का विचार नहीं है । नामस्मरण से जड़ और मूद मी तर जाते हैं ॥ २४ ॥ श्रतएव परमेश्वर के नामों का अखंड रीति से स्मरण करना चाहिए और भगवान के रूप का सन में ध्यान करना चाहिए-यही तीसरी मचि है ॥ २५ ।। चौथा समास-पादसेवनभक्ति। ॥ श्रीराम ॥ पिछले समास में स्मरणभनि का निरूपण किया गया । अव पादसेवन नामक चौथी भक्ति सुनिये ॥१॥ मोक्ष की इच्छा रख कर तन-मन और वचन ले सद्गुरु के चरणों की सेवा करना ही पादसेवनभत्ति है ॥२॥ जन्म-मरण की यातनाएं दूर करने के हेतु सद्गुरु के चरणों में अनन्यता रखने का ही नाम पादसेवन है ॥ ३ ॥ सद्गुरु कृपा के विना इस संसार से पार होने के लिए कोई उपाय नहीं है । इस कारण प्रेमपूर्वक सद्गुरु चरणों की लेवा करनी चाहिये ॥ ४॥ सद्गुरु, सम्पूर्ण सारासार का विचार करा कर, परमात्मदर्शन करा देता है ॥५॥ वस्तु (ब्रह्म )ष्टि से देख नहीं पड़ती; मन को भास नहीं होती और संगत्याग के बिना अनुभव में नहीं आती। श्रनुभव यदि लेना चाहें तो संगत्याग नहीं होता और संग- त्याग से अनुभव नहीं भाता-ये वाते अनुभवी ही को भास होती हैं, औरों के लिए तो कोरी गाथा है ॥ ६॥ ७॥ संगत्याग, आत्मनिवेदन, विदेह स्थिति, अलिप्तता, सहजस्थिति, उन्मनी और विज्ञान ये सातों एक रूप हैं ॥८॥ इनके सिवा और भी नाम हैं। उन्हें समाधान के संकेत- वचन कहना चाहिए। साधुचरणों की सेवा करने से सब मालूम हो जाता है |॥६॥ वेद, वेदों का रहस्य, वेदान्त, सिद्ध, सिद्ध-भाव, सिद्धान्त का रहस्य; अनुभव, अनुभव की वात, अनुभव का फल, और सत्य वस्तु

    • यदि अनुभव लेना चाहें तो संगत्याग, ( अर्थात् अहंकार, अभिमान और देहबुद्धि

. का त्याग ) नहीं होता; क्योंकि अनुभव लेने की इच्छा करते ही, अनुभव, अनुभव लेने वाला, और अनुभव लेने योग्य विषय--ये तीन संग लगते हैं; अच्छा, अगर ये तीनों छोड़ दें तो 'अनुभव' शब्द भी छूटा जाता है; क्योंकि उसी त्रिपुटी में यह भी है; इसके अतिरिक्त एक बात और है, कि जब अहंकार का भाव ही नहीं तव अनुभव कैसा और उसे ले कौन ? सारांश, ये बातें अनुभवी ही जानते हैं; दूसरे के लिए तो कोरी गाथा है !