पृष्ठ:दासबोध.pdf/१७५

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$33 दासबोध। [ दशक ४ सूर्यनारायण, लक्ष्मीनारायण, त्रिमल्लनारायण, श्रीहरिनारायण, आदिना- रायण और शेपशायी परमात्मा की मूर्तियां पूजना चाहिये ॥ १३ ॥ इस प्रकार सारे जगत् में परमेश्वर की अनन्त मूर्तियां है, सब का अर्चन करना पांचवीं भक्ति है ॥ १४ ॥ इसके अतिरिक्त, कुलधर्म के अनु- सार, उत्तम-मध्यम रीति से, अनेक देवी-देवताओं की भी पूजा करते रहना चाहिए-किसीको छोड़ना न चाहिए ॥१५-१६ ॥ अनेक तीर्थक्षेत्रों को जाना चाहिए और वहां के देवताओं की पूजा करनी चाहिए-नाना प्रकार की सामग्रियों से परमेश्वर का अर्चन करना चाहिए ॥ १७ ॥ पंचा- मृत, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, कपूर, आदि अनेक परिमल-द्रव्यों से भगवान की पूजा करनी चाहिए॥१८॥ नाना प्रकार के भोजनों की सुन्दर नैवेद्य, अनेक फल, तांबूल, दक्षिणा, अनेक प्रकार के अलंकार, दिव्य वस्त्र और वनमाला आदि सामग्रियां भगवान् को अर्पण करनी चाहिए ॥१६॥ पालकी, छत्र, सुखासन, मेघाडस्वर, सूर्यमुखी, पताका, निशान, श्रादि सामग्री, वीणा, कर-ताल, झांस, मृदंग, आदि नाना प्रकार के वाद्य, इत्यादि की धूमधाम से, भगवान् के उत्सव करने चाहिए और भक्तिभाव- पूर्वक अनेक सन्तों तथा कीर्तनकारों का गान कराना चाहिए, इससे भग- वान् में सद्भाव बढ़ता है ॥२०-२१॥ वापी, कृप, सरोसर, देवालय शिखर, राजांगण, तुलसीवन, भुंहेरे बनवाना चाहिये ॥ २२ ॥ मठ, मठियां, धर्म- शाला, देवस्थान में निवासस्थान बनवाना चाहिए और सत्ताईस मोतियों की माला, तथा अनेक प्रकार के वस्त्र, आदि नाना प्रकार की सामग्री जोड़ना चाहिए ॥ २३ ॥ अनेक प्रकार के पड़दे, मंडप, चँदोवे और नाना प्रकार के रत्न, तोरण, घंटा, हाथी, घोड़े, और गाड़ियां अनेक देवालयों में समर्पण करना चाहिये ॥ २४ ॥ अलंकार और अलंकार-पात्र, द्रव्य और द्रव्य-पात्र, अन्न-उदक और अन्न-उदक के पात्र, भांति भांति के, सम- र्पण करना चाहिये ॥ २५ ॥ वन, उपवन, पुष्प-वाटिका और तपस्वियों की पर्णकुटियां बनवाना चाहिए। यही सब भगवान की पूजा है ॥ २६ ॥ शुक, सारिका, मोर, बदक, चक्रवाक, चकोर, कोकिला, चित्तल हरिन, बारहसिंहा देवालय को समर्पण करने चाहिए ॥ २७ ॥ कस्तूरिया हिरन, विल्लियां, गाई, भैसी, बैल, वन्दर, नाना प्रकार के पदार्थ और लड़के देवा- लय में समर्पित करना चाहिए ॥२८॥ - इस प्रकार तन, मन, वचन, चित्त, वित्त, जीव, प्राण, और सद्भाव से, भगवान् का अर्चन करना चाहिए-इसीका नाम अर्चनशक्ति है ॥२६॥