पृष्ठ:दासबोध.pdf/१७८

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दास्यभनि। भक्ति सर्वश्रेष्ट है । बन्दना करने से बड़े बड़े सत्पुरुष प्रसन्न हो जाते हैं। चही छठवीं भक्ति है ॥ २५ ॥ सातवाँ समास-दास्यभक्ति । ॥ श्रीराम ।। पिछले समास में वन्दनभक्ति का निरूपण होचुका; शव, सातवीं भक्ति 'वास्य' का वर्णन सुनिये ॥१॥ इस भक्ति में, जो कुछ काम आ पड़े सद करना चाहिए और सदैव देवस्थान में हाजिर रहना चाहिए ॥२॥ भग- वान का वैभव सँभालना चाहिए, कोई न्यूनता न होने देना चाहिये-भग- वान् के भजन का खूब विस्तार करना चाहिए ॥ ३॥ टूटे हुए देवालय सुघराना चाहिए, टूटे हुए सरोवर बँधाना चाहिए, धर्मशालाएं और निवासम्यान जारी रखना चाहिए और नित्य नये नये काम शुरू करने चाहिए ॥ ४॥ नाना प्रकार की जीर्ण जर्जर रचनाओं का जीर्णोद्धार करना चाहिए। जो काम आ पड़े शीघ्र ही करना चाहिए ॥ ५॥ हाथी, घोड़ा, रथ, सिंहासन, चौकियां, पालकी, सुखासन, मंचान, डोले और विमान नये नये बनवाना चाहिए ॥६॥ मेघाडंबर, छत्र, चासर, सूर्यमुखी, निशान, आदि बहुत सी सामग्रियां, अत्यन्त श्रादर से, नित्य नवीन नवीन, बनवाना चाहिए ॥ ७ ॥ नाना प्रकार के यान, बैठने के लिए उत्तम स्थान और बहुत प्रकार के सुवर्ण-आसन यत्न के साथ बनवाना चाहिए ॥5॥ भवन, कोठड़ियां, पेटी, संदूक, नांदें, डहरी, बड़े, और सब द्रव्य बड़े प्रयत्न ले रखना चाहिए ॥ ६ ॥ मुँहेरे, तहखाने, विवर, आदि अनेक स्थल; गुप्तद्वार और अमूल्य वस्तुओं के भांडार बड़े यत्न के साथ बनवाते रहना चाहिए ॥ १० ॥ अलंकार, भूपण, दिव्य वस्त्र, मनोहर रत्न, सुवर्ण, आदि नाना प्रकार की धातुओं के पात्र प्रयत्नपूर्वक एकत्र करना चाहिए ॥ ११ ॥ पुष्पवाटिका, और नाना प्रकार के श्रेष्ठ वृक्षों के बाग लगाना चाहिए, और उनको जल से सींचते रहना चाहिए ॥ १२ ॥ पशु-शाला, पक्षिशाला, चित्रशाला, नाट्यशाला, इत्यादि देवस्थान में तैयार करवाना चाहिए तथा नाना प्रकार के वाद्य और गुणी गायक एकत्र करने चाहिए ॥ १३ ॥ पाक-शाला, भोजनशाला, धर्मशाला, सोनेवालों के लिए शयना- गार, सामग्री रखने के लिए स्थान, इत्यादि विशाल स्थल तैयार करवाने वाहिए ॥१॥ नाना प्रकार के परिमल-द्रव्यों के स्थान, भिन्न भिन्न साध .