पृष्ठ:दासबोध.pdf/१८

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प्रस्तावना। , पर उन्हें कुछ मालूम ही न होता था । सच है; महात्मा लोग यदि देह के मुख-दुःख की ओर ध्यान देने लगें तो उन्हें ईश्वर-प्राप्ति कैसे हो ? और वे जनोद्धार कैसे कर सकें? इस प्रकार समर्थ ने बारह वर्ष तक नाना प्रकार की कठिन तपस्या की । अन्तःकरण की शुद्धि कठिन तपश्चर्या ही से हो सकती है । " मन ही पन्ध और मोक्ष का कारण है। इस चंचल मन को, बिना तप किये, कोई अपने अधीन नहीं कर सकता। जो मन को जीत लेता है उसमें अद्भुत सामर्थ्य अवश्य आ जाता है । काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि मन के प्रमुख विकारों के अधीन होकर मनुष्य नाना प्रकार के दुष्कर्म करते हैं। तपश्चर्या करके शरीर को वलात् क्लेशित करने से ही मन ढीला पड़ता है और अन्त में मनोजय प्राप्त होता है । जब तक मनुष्य मन का जय नहीं कर पाता तब तक, ईश्वर-प्राप्ति करने के मार्ग में अनेक संकट आकर विन डालते हैं । अतएव सिद्ध है कि बिना तप किये—विना कट उठाये-परमात्म-खरूप का ज्ञान नहीं हो सकता, मोक्ष नहीं मिल सकता अथवा खतंत्रता के दर्शन नहीं हो सकते । समर्थ स्वयं अपने अनुभव से 'दासबोध' में इसी कष्ट या तप की महिमा गीते हैं:- कष्टविण फल नाहीं । कविण राज्य नाहीं॥ आधी कष्टाचे दुःख सोसिती । ते पुढे सुखाचे फल भोगिती ॥ कष्ट किये बिना फल नहीं मिलता, कष्ट किये बिना राज्य नहीं मिलता, जो पहले कष्ट (तप) के दुःख सहते हैं वे आगे सुख के फल भोगते हैं । अस्तु । श्रीसमर्थ ने बारह वर्ष तक, बड़ी दृढ़ता के साथ, तप किया । इतने समय में उन्हें पुराने ऋषिमुनियों की तरह, अनेक चार बड़े बड़े मायाची संकटों से सामना करना पड़ा; पर उन्होंने विनों की कुछ भी परवा न की ! तप करते समय श्रीराम ने, कई बार दर्शन देकर; उन्हें यह आज्ञा दी कि, तुम अव तपश्चर्या मत करो, कृष्णा-तीर जाकर जनोद्धार का काम प्रारम्भ करो।" परन्तु समर्थ ने यही दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि, जव तक पूर्ण रीति से मनोजय प्राप्त न हो जायगा-जव तक शरीर में जनोद्धार करने के लिए सामर्थ्य न आ जायगा--- तब तक मैं उस कार्य में हाथ न डालूँ गा, अन्त में जव उन्होंने देखा कि, अव मनोविकारों के लिए हमारे शरीर में स्थान नहीं है तब उन्होंने तपस्या वन्द कर दी। और टाकली में जिस कुटी में रह कर वे तपस्या करते थे उसमें हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा करने के लिए, उद्धव गोखामी को नियत कर दिया। इसके बाद वे पैरों में पादुका, हाथ में माला काँख में कूबड़ी और तुम्बा, मस्तक में टोपी और शरीर में कफनी पहन कर, तीर्थयात्रा तथा देशपर्यटन करने के लिए निकले। तीर्थयात्रा और देशपर्यटन । जिस प्रकार तीन तपस्या करके मनोजय प्राप्त करने की आवश्यकता है उसी प्रकार लोकोद्धार या धर्मस्थापना करने के लिए, देशपर्यटन करके स्वदेशस्थिति, और तीर्थयात्रा करके