पृष्ठ:दासबोध.pdf/१८३

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१०२ दासबोध। [दशक ४ से साक्षित्व कुछ बचता नहीं, अतएव, श्रादि और अंत में प्रात्मा ही है, तब फिर “ मैं " कहां से भाया* ? ॥ १४ ॥ श्रात्मा एक है; वह स्वान- न्दधन है और 'अहं श्रात्मा ' यह वचन है। फिर वहां मैं' भिन्न कहां से बचा? ॥ १५ ॥ " सोहं हंसा"-अर्थात् मैं वही केवल आत्मा हूं-इस वचन का भीतरी अर्थ देखना चाहिये; आत्मा का विचार करने से फिर वहां " मैं " कुछ नहीं रह जाता ! ॥ १६ ॥ श्रात्मा निर्गुण निरंजन है, इसके साथ अनन्यता होनी चाहिये । अनन्य का अर्थ है-"अन्य नहीं;" तव वहां 'मैंअन्य' कहां से श्राया? ॥ १७ ॥ आत्मा अद्वैत है; वहां द्वैत-अद्वैत कुछ नहीं है; अतएव वहां भला 'मैं'-पन की कल्पना कहां से रहेगी ? ॥ १८ ॥ श्रात्मा पूर्णता से परिपूर्ण है-वहां गुणागुण कुछ नहीं है। उस निखिल निर्गुण में “ मैं " कौन और कहां से आया ? ॥१६॥ त्वंपद, तत्पद और असिपद के भेदाभेद का निरसन हो जाने पर अर्थात्, " तत्त्वमसि' (वह तू है ), यह महावाक्य सिद्ध हो जाने पर, शेष शुद्ध ब्रह्म रह जाता है, वहां 'मैं' कहां से आया ? ॥ २० ॥ 'जीवात्मा' और 'शिवात्मा' इन उपाधियों का निरसन करने पर जान पड़ता है कि पहले यही दो कहां से आये ? स्वरूप में दृढ़बुद्धि होने पर, फिर 'मैं' कुछ नहीं रह जाता ॥ २१ ॥ " मैं" मिथ्या है, ईश्वर सञ्चा है। ईश्वर' और 'भक्त' दोनों अनन्य है-दोनों एक हैं । इस व- चन का अभिप्राय अनुभवी जानते हैं ! ॥ २२ ॥ इसीको आत्मनिवेदन कहते हैं-यही ज्ञानियों का समाधान है ॥ २३ ॥ पंचभूतों में जैसे श्रा- काश और सब देवताओं में जैसे जगत्पिता परमात्मा श्रेष्ठ है उसी प्रकार नवों भजियों में यह नवीं भजि श्रेष्ठ है ॥ २४ ॥ नवीं भक्ति, (यह आत्म- निवेदन,) न होने से जन्म-मरण नहीं मिटता-यह वचन सत्य-सिद्ध है, इसमें कोई सन्देह नहीं॥२५॥अस्तु। यह नवधा (नव प्रकार की) भक्ति करने से सायुज्य मुजित मिलती है और सायुज्य मुक्ति का कल्पान्त में भी नाश नहीं है ॥ २६ ॥ शेष तीनों मुक्तियों का नाश है; परन्तु सायुज्य मुक्ति अचल है। तीनों लोकों का भी निर्वाण हो जाने पर: सायुज्य मुक्ति बनी

  • 'मैं' तत्वों का साक्षी है-इससे जान पड़ता है कि 'मैं' तत्वों से भिन्न कुछ और

ही है । मेरे ही प्रत्यक्ष प्रमाण से साबित हो जाता है कि 'मैं' जो कुछ है वह तत्वों से अलग है । और आत्मप्रतीति हो जाने पर, अर्थात् “ सर्वं खल्विदं ब्रह्म " का ज्ञान हो जाने पर, फिर प्रत्यक्ष प्रमाण वचता ही कहां है.? सारांश ,आदि. अंत में आत्मा एक ही है-' में ' उससे कोई:भिन्न पदार्थ नहीं है।