पृष्ठ:दासबोध.pdf/१८६

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रमाल १० स्तृष्टि-वर्णन और मुक्ति-चतुष्टय । १०५ है। अतपदा, सिर्फ उस निर्गुण की ही भक्ति अचल है-वही सायुज्य मुक्ति है ।। २६ ॥ निर्गुण में अनन्य होने से सायुज्य मुक्ति मिलती है-निर्गुण में सिन जाने ही को-तदाकार होने ही को-सायुज्य मुक्ति कहते हैं ॥३०॥ गुण भक्ति चलित है और निर्गुण भक्ति अचल है-सद्गुरु के शरण में शान से यह सब मालूम हो जाता है ॥ ३१ ॥