पृष्ठ:दासबोध.pdf/१८९

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दासबोध। [दशक ५ क्षिणा आदि सब करते हैं ॥ २६ ॥ वेल, नारियल, श्रादि चढ़ा कर पंचा- यतन-पूजा और मृत्तिका के लाखों लिंगों की पूजा, सांगोपांग करते हैं ॥ ३० ॥ निष्ठा और नेम के साथ उपवास, इत्यादि अनेक कर्म, बड़ी सिह- नत के साथ, लोग करते हैं; परन्तु वे इन सारे कर्मों का केवल फल ही पाते हैं-मर्म नहीं पाते ! ॥ ३१॥ हृदय में फल की आशा रख कर लोग । यज्ञादि कर्म करते हैं और अपनी इच्छा से ही जन्म का वयाना ले लेते हैं। ॥ ३२ ॥ नाना परिश्रम करके चौदहो विद्याओं का अभ्यास करते हैं और यद्यपि उन पर सारी ऋद्धि-सिद्धियां खूब प्रसन्न हो जाती हैं, तथापि सद्गुरु-कृपा विना उनका सञ्चा हित कभी नहीं होता-उनका यमपुरी का अनर्थ नहीं मिटता ॥ ३३ ॥ ३४ ॥ जब तक ज्ञानप्राप्ति नहीं होती तब तक आवागमन नहीं मिटता । गुरुकृपा के बिना अधोगति और गर्भवास नहीं जाता ॥ ३५ ॥ जब तक ब्रह्मज्ञान प्राप्त नहीं होता तब तक ध्यान, धा- रणा, मुद्रा, श्रासन, भक्ति, भाव, भजन आदि सब याँही है ! ॥३६॥ सद्गुरु कृपा प्राप्त किये बिना जो लोग अन्य साधनों में भटकते हैं वे ऐसे गिरते हैं जैसे अन्धा किसी खंदक या गढ़े में, ठोकर खाकर, गिरता है ! ॥ ३७ ॥ जिस प्रकार आखों में अंजन लगाने से गुप्त खजाना देख पड़ता है उसी प्रकार सद्गुरुवचन से ज्ञान का प्रकाश होता है ॥ ३८ ॥ सद्गुरु बिना जन्म निष्फल है, सद्गुरु बिना सब दुख ही है और सद्गुरु बिना सं- सार-ध्यथा नहीं जा सकती ॥ ३६॥ सद्गुरु की ही कृपा से ईश्वर प्रगट होता है और अपार संसार-दुःख नाश हो जाते हैं ॥ ४० ॥ प्राचीन काल में जो बड़े बड़े संत महंत और मुनीश्वर हो गये उन्हें भी ज्ञान और वि- शान का विचार सद्गुरु से ही मिला था ॥ ४१॥ महाराजा रामचन्द्र जी और महायोगेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र जी, आदि गुरुभजन में बहुत तत्पर रहते थे । अनेक सिद्ध-साधु और संत जनों ने गुरुसेवा की है ॥ ४२ ॥ किंव- हुना, सकल सृष्टि के चालक,जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि हैं, वे भी लगुरु चरणों की सेवा करते रहते हैं-सद्गुरु के आगे इनका भी महत्व नहीं है ॥ ४३ ॥ अस्तु । जिसे मोक्ष चाहना हो उसे सद्गुरु का खोज क- रना चाहिए, सद्गुरु के बिना मोक्ष मिलना असम्भव है ॥ १४ ॥ परन्तु सद्गुरु कोई अन्य मामूली गुरुओं की तरह नहीं होते; क्योंकि इनकी कृ- पा से शुद्ध ज्ञान का प्रकाश होता है॥ ४५ ॥ अव अगले समास में ऐसे ही लद्गुरु के लक्षण बतलाये जाते हैं । श्रोता लोग ध्यानपूर्वक श्रवण करें॥४६॥