पृष्ठ:दासबोध.pdf/२०१

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दासबोध । [ दशक ५ चौथा समास-मंत्र-लक्षण । ॥ श्रीराम ।। मंत्र के बहुत से लक्षण हैं; पर यहां पर थोड़े से बतलाते हैं । सुनिये:- ॥१॥ बहुत लोग किसी मंत्र की दीक्षा देते हैं; कोई कोई किसी देवता का नाम मात्र ही बतलाते है और कोई ओंकार का जप कराते हैं ॥२॥ कोई शिव, देवी, विष्णु, महालक्ष्मी, अवधूत, गणेश और सूर्य के मंत्र वतलाते हैं ॥ ३ ॥ कोई मत्स्य, कूर्म और वाराह के मंत्र बतलाते हैं और कोई नृसिंह, वामन, भार्गव, रघुनाथ, तथा कृष्ण के मंत्र जपने के लिए उपदेश करते हैं ॥ ४॥ कोई कोई भैरव, लारी, हनुमान, यक्षिणी, नारायण, पांडुरंग और अघोर इत्यादि के मंत्र जपने के लिए कहते हैं ॥५॥ शेप, गरुड़, वायु, बैताल, भोटिंग, आदि के बहुत से मंत्र हैं-कहां तक बतलाये जाय ॥ ६ ॥ बाला, बगुला, काली, कंकाली, और बटुक श्रादि अनेक शक्तियों के अनेक मंत्र हैं ॥ ७॥ इसी प्रकार भिन्न भिन्न जितने देवता हैं उतने ही मंत्र हैं। कोई सहज है; कोई अवघड़ हैं; कोई विचित्र हैं; कोई खेचर, आदि दारुण बीजों के हैं ॥ ८ ॥ संसार में इतने देवता हैं कि उनकी कोई गणना तो कर ही नहीं सकता । उन सब के मंत्र भी असंख्य हैं-वाणी को उनके बतलाने की शक्ति नहीं है ॥ ६ ॥ अनन्त मंत्रमालाएं हैं- एक से भी एक बढ़ कर हैं । यह सब माया की विचित्र कला है-इसे कौन जान सकता है ! ॥ १०॥ कितने ही मंत्रों से भूत उतर जाते हैं। कितने ही से व्यथा नाश होती है और कितने ही मंत्रों से जूड़ी-बुखार, बिच्छू और सर्प उतरते हैं ॥ ११ ॥ इस तरह नाना प्रकार के मंत्र कान में सुनाते हैं और जप, ध्यान, पूजा, यंत्र, इत्यादि, विधान- पूर्वक, बतलाते हैं ॥ १२ ॥ कोई ‘शिव शिव' बतलाते हैं; कोई 'हरि हरि' कहलवाते हैं; और कोई 'विठ्ठल विठ्ठल ' का मंत्र देते हैं ॥ १३ ॥ एक 'कृष्ण कृष्ण' बतलाते कोई "विष्णु विष्णु' कहलवाते हैं और कोई नारायण नारायण ' का मंत्र देते हैं ॥१४॥ कोई अच्युत अच्युतं कहते हैं; कोई 'अनंत अनंत' कहते हैं और कोई कहते हैं कि 'दत्त'दत्त' कहते रहो ॥ १५॥ कोई 'राम राम' बतलाते हैं। कोई 'ॐ ॐ बतलाते हैं; और कोई कहते हैं कि 'मेघ-श्याम' को बहुत नामों से स्मरण करो ॥ १६ ॥ कोई कहते हैं 'गुरु गुरु;' कोई कहते हैं 'परमेश्वर;' और कोई कहते हैं कि 'विघ्नहर' (गणेश) का चिन्तन करते रहो ॥१७॥ कोई 'श्यामराज' को बतलाता है; कोई ‘गरुडध्वज' कहाता है और