पृष्ठ:दासबोध.pdf/२०२

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समास ४] मंत्र-तक्षण। १२१ कोई कहता है कि 'अधोक्षज' को जपते रहो ॥ १८ ॥ कोई 'देव, देव;' कोई 'केशव, केशव' और कोई "भार्गव, भार्गव' जपने का उपदेश करते है ।। २६॥ कोई विश्वनाथ' का जप कराते हैं; कोई 'मल्लारी' का जप बतलाते हैं और कोई 'तुकाई, तुकाई' का जप कराते हैं ॥ २० ॥ कहां तक बतलावें-'शिव' और 'शत्ति' के अनंत नाम हैं-यही नाम, लव गुरु, अपनी अपनी इच्छा के अनुसार, जपने को कहते हैं॥२१॥ कोई खेचरी, भूचरी, चाचरी और अगोचरी ये चार मुद्रा बतलाते हैं और कोई नाना प्रकार के श्रासन सिखाते हैं ॥ २२॥ कोई चमत्कारिक दृश्य दिखाते हैं, कोई अनाहतनि बतलाते हैं और कोई पिंडज्ञानी गुरु पिंडज्ञान (शरीर-रचना का ज्ञान) बतलाते हैं ॥ २३ ॥ कोई कर और कोई. उपासना मार्ग बतलाते हैं और कोई अष्टांग योग और सप्त चक्र बतलाते हैं ॥२४॥ कोई अनेक प्रकार के तप बतलाते हैं। कोई अजपा मंत्र का उपदेश करते हैं और जो तत्वज्ञानी हैं वे विस्तार के साथ तत्वज्ञान बतलाते हैं ॥ २५ ॥ कोई सगुण और कोई निर्गुण का उपदेश करते हैं और कोई तीर्थाटन करने का उपदेश करते हैं ॥ २६ ॥ कोई महावाक्यों को पतला कर उनका जप करने के लिए श्राज्ञा देते हैं और कोई 'सर्व खल्विदं ब्रह्म' का मंत्र देते हैं ॥ २७ ॥ कोई शाक्तमार्ग वत- लाते हैं; कोई मुक्तिमार्ग की प्रतिष्ठा करते हैं और कोई भक्तिपूर्वक इंद्रिय- पूजन कराते है ॥ २८ ॥ कोई वशीकरण, स्तंभन, मोहन, उच्चाटन के मंत्र बतलाते हैं और कोई नाना प्रकार के टोनों का उपदेश करते हैं ॥ २६ ॥ यह मंत्रों की दशा है ! बस अब, कहां तक बतलावें-इस प्रकार के अ- १ 'तुकाई ' तुलजापुर की देवी को कहते हैं। २ मुद्रा विषयों से दृष्टि हटा कर एक विशेष पदार्थ पर, एक विशिष्ट प्रकार से, लगाना । ३ दृष्टि को कोई न कोई अपूर्व पदार्थ दिखाना । ४ अनाहतध्वनि, प्राणी के देह में जो अनेक ध्वनियां सतत हुआ करती हैं । ये दस प्रकार की हैं। मामूली ध्वनियां जो वाहर सुन पड़ती हैं, वे आघात से उत्पन्न होती हैं; परन्तु शरीर के भीतर की ध्वनियों की वह दशा नहीं है, इसी लिए उन्हें 'अनाहत' कहते हैं । ५ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि-ये योग के आठ अंग हैं। ये आठो अंग सधने पर योगसिद्धि होती है। योग-चित्तवृत्तिनिरोध । ६ शरीर में गुदाद्वार से लेकर ब्रह्मरंध्र तक सात स्थानों में सात चक्र हैं । ७ प्राणी के श्वासो- च्छ्वास के साथ ' सोहं' की ध्वनि सतत हुआ करती है, उसे अजपा गायत्री कहते हैं । द०१७ स० ५ देखो 1 ८" प्रज्ञानं ब्रह्म,"." अहं ब्रह्मास्मि, ""तत्वससि," "अयमात्मा ब्रह्म" ये चार महावाक्य क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद के हैं १६