पृष्ठ:दासबोध.pdf/२०३

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१२५ दासबोध। दशक ५ संख्या मंत्र होंगे! ॥ ३० ॥ अस्तु । मंत्र तो अनेक है; पर ज्ञान के विना सब निरर्थक हैं । इस विषय में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं:- ॥ ३१ ॥ नानाशास्त्रं पठेल्लोको नानादैवतपूजनम् । आत्मज्ञानंविना पार्थ सर्वकर्म निरर्थकम् ॥ १ ॥ शैवशाक्तागमाघाये अन्ये च बहवो मताः । अपभ्रंशसमास्तेऽपि जीवानां भ्रांतचेतसाम् ॥ २ ॥ न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिदमुत्तमम् ॥ तात्पर्य, ज्ञान के समान पवित्र और उत्तम अन्य कुछ नहीं देख पड़ता। इस लिए पहले आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए ॥ ३२॥ सब संत्रों से आत्मज्ञान का मंत्र (गुह्य उपदेश) विशेष उत्तम है-इस विषय में अगवान् ने बहुत जगह कहा है ॥ ३३ ॥ यस्य कस्य च वर्णस्य ज्ञानं देहे प्रतिष्ठितम् । तस्य दासस्य दासोहं भवे जन्मनि जन्मनि ॥ १ ॥ आत्मज्ञान की महिमा चतुर्मुख ब्रह्मा भी नहीं जानते; फिर विचारा यह जीवात्मा प्राणी क्या जाने ? ॥३४॥ सब तीर्थ करके स्नान-दान करने का जो फल है उससे करोड़गुना फल भी ब्रह्मज्ञान की बराबरी नहीं कर सकता ॥ ३५॥ पृथिव्यां यानि तीर्थानि स्नानदानेषु यत्फलम् ।। तत्फलं कोटिगुणितं ब्रह्मज्ञान समं हि न ॥ १॥ अतएव, आत्मज्ञान गहन से भी गहन है । यह विषय अब बतलाते हैं; शान्त होकर सुनिये ॥ ३६ ॥ पाँचवाँ समास-बहुधा ज्ञान। ( आत्मज्ञान से भिन्न अनेक प्रकार के ज्ञान । ) || श्रीराम ॥ जद तक प्रांजल (सञ्चा) ज्ञान नहीं है तब तक सब कुछ निष्फल है; क्योकि ज्ञान के बिना कष्ट नहीं दूर हो सकता ॥ १॥ 'ज्ञान' का नाम