पृष्ठ:दासबोध.pdf/२०४

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वहुधा ज्ञान । १२३ लेते ही भ्रम होने लगता है-सन कोई कहते होंगे कि-भाई, इसमें क्या रहल्य होगा! अच्छा, अब क्रमशः इस विषय को बतलाते हैं ॥२॥ भूत, नविय, वर्तमान, भली भांति ( स्पष्ट), मालुम होने को भी ज्ञान कहते हैं; पर वह ज्ञान नहीं है ॥ ३॥ बहुत विद्यापटन करना, संगीत-शास्त्र और राममान जानना; वैद्यकशास्त्र और बेदाध्ययन करना भी ज्ञान नहीं है ॥ ४ ॥ अनेक व्यवसायों का ज्ञान, नाना प्रकार की दीक्षाओं का ज्ञान और बहुत सी परीक्षाओं का ज्ञान भी सच्चा ज्ञान नहीं है ॥ ५॥ नाना प्रकार की वनिताओं, अनेक भांति के मनुप्यों और बहुत तरह के नरों की परीक्षा करना भी कोई ज्ञान नहीं है ॥ ६ ॥ बहुत प्रकार के अश्व, गज और श्वापदों (बनैले जीवों) की परीक्षा करना ज्ञान नहीं है ॥ ७ ॥ पशु-पनी, इत्यादि नाना प्रकार के जीवों की परीक्षा करना भी ज्ञान नहीं है || 2 || नाना प्रकार के यान, वस्त्र और शस्त्रों की परीक्षा करना भी ज्ञान नहीं कहा जा सकता ॥ ६ ॥ अनेक प्रकार की धातुओं, सिक्कों और रतों की परीक्षा करना भी ज्ञान नहीं है ॥ १०॥ नाना भांति के पापाणों, काष्टों और वाद्यों की परीक्षा करना भी ज्ञान नहीं है ॥ ११ ॥ अनेक प्रकार की पृथ्वी, नाना भांति के जल और तरह तरह के अग्निमर्या पदार्थों की परीक्षा को भी ज्ञान नहीं कहते ॥ १२ ॥ नाना प्रकार के रस, बीज और अंकुरों की परीक्षा भी ज्ञान नहीं है ॥ १३॥ अनेक तरह के फल, फूल और बल्लियों की परीक्षा भी कोई ज्ञान नहीं है ॥ १४॥ अनेक प्रकार के दुःख और रोग तथा भांति भांति के चिन्हों की परीक्षा भी कुछ सच्चा ज्ञान नहीं है ॥ १५ ॥ अनेक प्रकार के मंत्र, यंत्र और बहुत तरह की मूर्तियों की परीक्षा कोई सच्चा ज्ञान नहीं है ॥ १६॥ अनेक क्षेत्रों (खेतो), गृहों (घरों) और पात्रों की परीक्षा भी सच्चा ज्ञान नहीं है ॥ २७ ॥ नाना प्रकार की भावी-परीक्षा, अनेक समयों की परीक्षा और नाना तों की परीक्षा, ज्ञान नहीं है ॥ १८ ॥ नाना प्रकार की अनुमान- परीक्षा (अंदाजों की जांच), अनेक निश्चयों की परीक्षा, और नाना प्रकार की परीक्षा, सच्चा ज्ञान नहीं है ॥ १६ ॥ अनेक प्रकार की विद्या, कला और चातुर्य की परीक्षा भी कोई सच्चा ज्ञान नहीं है ॥ २० ॥ नाना प्रकार के शब्दों की परीक्षा, अनेक अर्थों की परीक्षा और बहुत सी भापाओं की परीक्षा भी सच्चा ज्ञान नहीं है ॥२१॥ नाना प्रकार के स्वरों, वणे (अक्षरों) की परीक्षा और बहुत तरह की लेखनपरीक्षा (लिपियों की परीक्षा) भी कोई ज्ञान नहीं है ॥ २२ ॥ नाना प्रकार के मत, वहुत तरह के ज्ञान और अनेक वृत्तियों की परीक्षा करना भी सच्चा ज्ञान नहीं