पृष्ठ:दासबोध.pdf/२०६

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. समायः ] शुद्ध ज्ञान का निरूपण। छठवाँ समास-शुद्ध ज्ञान का निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ शृद्ध ज्ञान प्रात्मज्ञान है, और 'पात्मज्ञान' का लक्षण यह है कि स्वयं नाप ही अपनेको जानना चाहिए ॥१॥ मुख्य देवता को जानना, सत्य- स्वरूप को पहचानना और नित्यानित्य का विचार करना-इसका नाम है ज्ञान' ॥२॥ जहां इस सम्पूर्ण दृश्यप्रकृति का लय हो जाता है; जहां पंचभौतिक कुछ रहता ही नहीं; जहां द्वैत का जड़ से नाश हो जाता है- (अर्थात् जहां एक को छोड़ कर और कुछ रहता ही नहीं ) इसका नाम 'ज्ञान' है ॥ ३॥ जो मन और बुद्धि के लिए भी अगोचर है जहां तर्क की गति नहीं है जो उल्लेख (निर्देश) और परी से भी परे है, उसका नाम है 'ज्ञान' ॥ ४॥ जहां दृश्यभान कुछ नहीं है। जहां 'अहंब्रह्मास्मि' यह झान भी अज्ञात है; ऐसा जो शुद्ध और विमल स्वरूपज्ञान है वही 'ज्ञान' है ॥ ५ ॥ 'सब की साक्षी' जो तुरीयांवस्था है उसे लोग 'शान' कहते हैं; परन्तु उस अवस्था में भी जो ज्ञान होता है, वह पदार्थज्ञान से भिन्न नहीं है; अतएव वह भी व्यर्थ है ॥६॥ क्योंकि दृश्य पदार्थ के जानने को पदार्थ ज्ञान ही कहते हैं और शुद्ध स्वरूप के जानने को स्वरूपज्ञान कहते हैं ॥ ७॥ जहां किसीका अस्तित्व ही नहीं है वहां'सर्वसाक्षित्व'-सब का साक्षीपन-कहां से आया ? इस लिए तुर्या का ज्ञान भी शृद्ध न मानना चाहिए ॥ ८ ॥ 'ज्ञान' अद्वैत को कहते हैं-(जहां एक को छोड़ कर दृसरा है ही नहीं)-और तुर्यावस्था तो प्रत्यक्ष द्वैतरूपी है- (अर्थात् तुर्या 'सब की साक्षी है'-इस लिए एक तो स्वयं तुर्या हुई और दूसरे वे सब हुए, १ चारों प्रकार की वाणियों में सव से बड़ी ज्ञानवान् वाणी । २ हम ब्रह्म-स्वरूप हैं-यह ज्ञान । ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति होने पर यह ज्ञान न रहना चाहिये और यदि यह ज्ञान बना रहा तो अज्ञान ही है। ३ अवस्था चार हैं:-जागृति, स्वप्न, सुपुप्ति और तुरीय अथवा तुर्या । जागृति में जीव सब प्रकार के बाहरी व्यवहार करता है; स्वप्न में सव इंद्रियों का लय हो जाता है और केवल मन ही सव व्यवहार करता है। सुपुप्ति-गाढ़ी नींद । इस अवस्था में सव इंद्रियों का और मन का भी अज्ञान में लय हो जाता है; केवल जीव मूढ़ अवस्था में रहता है । ये तीनों अवस्थाएं अज्ञान से होती हैं । तुरीयावस्था में जीव को स्वस्वरूप का ज्ञान होता है-अर्थात् उसे यह अनुभव होता है कि मैं ब्रह्मरूप हूं। परन्तु यह ज्ञान भी उपाधि-सहित ही है । शुद्ध यह भी नहीं है । इसके बाद उन्मनी अवस्था है, जिसमें मन का भी लय हो जाता है।