पृष्ठ:दासबोध.pdf/२१२

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माम ] बन्द्ध-लक्षण। टेप, धर्म, अभिलापा, आदि बहुत प्रकार के दोष उसमें अधिकता से बाल करते हैं ॥ २७ ॥ उसमें भ्रष्टता, अनाचार, नगृता, एकंकार, अनीति, अविचार, श्रादि दुर्गुणों की अधिकता होती है ॥ २८ ॥ वह बरन निष्ठुर, घातकी, हत्यारा, पातकी, क्रोधी होता है और अनेक कुविद्या जानता है ॥ २६ ॥ दुराशा. स्वार्थ, कलह, अनर्थ, दुर्मति और बदला लेने की बुद्धि श्रादि दोष उसमें अधिकता के साथ होते हैं ॥३०॥ कल्पना, कामना, तृष्णा, वासना, ममता, भावना, धादि अवगुण उसमें बहुत होते हैं ॥ ३१॥ वह विकल्पी, विपादी, मूर्ख, श्रासभा, प्रपंची और उपाधी आधेक होता है ।। ३२ वह बहुत चाचाल, पाखंडी, दुर्जन ढोंगी, दुष्ट, दुर्गुणी होता है ॥ ३३ ॥ अविश्वास, भ्रम, भ्रान्ति, तम, विक्षेप, आलस, आदि उसमें बहुतायत से होते हैं ॥ ३४ ॥ बद्ध पुरुप बहुत कपण, उद्धट, दूसरे की भलाई न देख सकनेवाला, मस्त, असत्कर्मी और लापरवाह होता है ॥ ३५ ॥ जो परमार्थ विषय में अज्ञान हो; प्रपंच का भारी ज्ञान रखता हो और जिस स्वयं समाधान न हो उसका नाम बद्ध है ॥ ३६॥ वह परमार्थ का अनादर करता है। प्रपंच का अति अादर करता है और गृहस्थी का भार खुशी से ढोता है ॥ ३७॥ जिसे सत्संग अच्छा नहीं लगताः जिसको संत-निन्दा से प्रीति है और जिसने देह-बुद्धि की बेड़ियां डाल ली है उसका नाम ब है ॥ ३८ ॥ वह हाथ में की जपमाला लिये रहता है। प्रत्येक समय कांता का ध्यान करते रहता है और उसके पास सत्संग का अभाव रहता है ॥ ३६॥ वह सदा नेत्रों से स्त्री तथा धन को देखता है, कानों से भी इन्हींकी चर्चा सुना करता है, और धन ही को चिन्ता करता रहता है ॥४०॥ बह काया, वाचा, मन, चित्त, वित्त, जीव, प्राण से धन और स्त्री का ही भजन करता रहता है ॥ ४२ ॥ वह सम्पूर्ण इन्द्रियां स्थिर करके उन्हें स्त्री और धन में ही लगा देता है ॥ ४२ ॥ वह स्त्री और धन ही को तीर्थः स्त्री और धन हो को परमार्थ तथा स्त्री और धन ही को सर्वस्व जानता है ॥ ४३ ॥ वद्ध पुरुप, व्यर्थ समय न खोते हुए, सदा गृहस्थी की चिन्ता करता रहता है। सब कथा-वार्ता उसीको समझता है ॥ ४४ ॥ उसे अनेक प्रकार की चिन्ता, उद्वेग और दुखों का संसर्ग बना रहता है और वह परमार्थ का त्याग कर देता है ॥ ४५ ॥ घड़ी, पल और निमिष मात्र भी दुश्चित्त न होते हुए वह सदा स्त्री-धन-प्रपंच का ध्यान किया करता है ॥ ४६ ॥ तीर्थयात्रा, दान, पुण्य, भक्ति, कथा-निरूपण, मंत्र, पूजा, जप, ध्यान, आदि सभी कुछ वह