पृष्ठ:दासबोध.pdf/२१९

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दासबोध। [दशक ५ है और आप्तरूपी चोरों से अपने को बचाता है ! ॥ ५२ ॥ पराधीनता पर छुद्ध हो उठता है; ममता पर संतप्त होता है; और दुराशा का एकाएक त्याग कर देता है ॥ ५३ ॥ स्वरूप में मन को डाल देता है ! यातना को यातना देता है और उद्योग तथा प्रयत्न की प्रस्थापना करता है ॥ ५४॥ साधनमार्ग से अभ्यास का संग करता है; उद्योग को साथ लेकर चलता है और प्रयत्न को अपना अच्छा सहकारी बनाता है ! ॥ ५५ ॥ साधक, सावधान और दक्ष होकर, नित्य-अनित्य का विवेक करता है और देह- बुद्धि का संग छोड़ कर केवल सत्संग ग्रहण करता है ॥ ५६ ॥ संसार को बलपूर्वक हटा देता है; विवेक से गृहस्थी का जंजाल छोड़ देता है; और शुद्ध श्राचार से अनाचार को भ्रष्ट करता है ! ॥ ५७ ॥ भूल को भूल. जाता है। आलस का आलस करता है, और दुश्चित्तता के लिए साव- : धान नहीं होता-उसके लिए दुश्चित्त ही रहता है ! ॥ ५८ ।। अस्तु । साधक पुरुष अध्यात्म-निरूपण का श्रवण करके अवगुणों को छोड़ देता है और उत्तम मार्ग पर आता है ॥ ५६ ॥ वह दृढ़तापूर्वक सव से विरक्त होकर परमार्थ-मार्ग का साधन करता है । अब सिद्ध के लक्षण अगले समास में सुनिये ॥ ६० ॥ यहां एक संशय उट सकता है, कि क्या निस्पृह और विरका मनुष्य ही साधक हो सकता है; और क्या सांसारिक मनुष्य त्याग विना साधक नहीं हो सकता ? ॥६॥ इस शंका का समाधान अगले समास में ध्यानपूर्वक सुनिये ॥६२॥ दसवाँ समास-सिद्ध-लक्षण । ॥ श्रीराम ॥ पोछे जो यह शंका हुई कि, क्या सांसारिक मनुष्य, त्याग के बिना, साधक नहीं हो सकता, उसका अब समाधान करते हैं ॥ १॥ मृहस्थी में रहते हुए ही यदि साधक वनना हो, तो भी सन्मार्ग का स्वीकार और असत् मार्ग का त्याग करना ही चाहिए ॥२॥ क्योंकि कुबुद्धि छोड़े विना कुछ सुबुद्धि नहीं आ सकती । अतएव कुबुद्धि और असन्मार्ग का छोड़ना ही गृहस्थ था संसारी मनुष्य का त्याग है ॥३॥ प्रपंच को बुरा समझ कर, मन सेजव विषय त्याग किया जाता है तभी, आगे चल कर, पर- मार्थ का मार्ग मिलता है ॥४॥ नास्तिकता, संशय और अज्ञान का त्याग धीरे धीरे होता है ॥ ५॥ उपर्युक्त भौतरी त्याग सांसारिक