पृष्ठ:दासबोध.pdf/२२५

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दासबोध। [ दशक ६ बद्ध ही की भेट करे तो वह सिद्ध कैसे बनेगा ? ॥ २६ ॥ देहाभिमानी यदि देहाभिमानी के पास जाय तो वह विदेह कैसे हो सकता है ? इसी तरह शाता के बिना ज्ञानमार्ग नहीं मिल सकता ॥ ३०॥ अतएव, ज्ञाता की खोज करके, उसकी कृपा सम्पादन करके, उससे सारासार विचार का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए-तभी मोक्ष मिल सकता है ॥ ३१ ॥ दूसरा समास-परमात्मा की प्राप्ति । ॥ श्रीराम ॥ अब उस उपदेश के लक्षण सुनिये जिससे सायुज्य मुक्ति प्राप्त होती नाना प्रकार के मतों का देखना किसी काम नहीं आता ॥१॥ जिस उपदेश में ब्रह्मज्ञान नहीं है उसमें कोई विशेषता नहीं है-वह तो ऐसा ही है जैसे बिना दानों की भूसी ! ॥२॥ छुछले में दाने और मढे में सक्खन . नहीं निकलता । चावलों के धोवन में दूध का स्वाद नहीं मिलता ॥३॥ किसी फल के वृक्ष की छाल खाना,अथवा उसके बकले चूसना या गिरी छोड़ कर नरेचा खाना मूर्खता है ॥४॥ इसी प्रकार जिस उपदेश में ब्रह्मज्ञान नहीं है वह व्यर्थ है-असार है। 'सार' को छोड़ कर कौन चतुर पुरुष असार का सेवन करेगा?॥५॥ अस्तु । अब निर्गुण ब्रह्म का निरूपण करते हैं, इस लिए श्रोता लोगों को स्थिरचित्त हो जाना चाहिए ॥ ६ ॥ यह सारी सृष्टि पंचमहाभूतों से रची हुई है, यह सदा स्थिर नहीं रह सकती ॥७॥ इस पंचभौतिक सृष्टि के आदि और अंत में निर्गुण ब्रह्म है। वहीं सिर्फ शाश्वत है और बाकी, जितना कुछ पंचभौतिक है, वह सब नाशवंत है ॥ ८॥ इन भूतों को परमात्मा कैसे कह सकते हैं ? किसी मनुष्य ही को यदि भूत कहा जाय तो वह चिढ़ता है ॥ ६॥ फिर वह तो जगत्पिता परमात्मा है, और उसकी महिमा ब्रह्मा आदि भी नहीं जानते-उसे भूत की उपमा कैसे दी जा सकती है ? ॥ १०॥ यह कहने से कि, परमात्मा पंचभूतों की तरह है, मिथ्यापन का दोष लगता है । यह बात सन्त लोग जानते हैं ॥ ११ ॥ पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश-इनमें भीतर-बाहर-सब जगह-जगदीश व्याप्त है; परन्तु इन पंचभूतों का नाश हो जाता है और वह अविनाशी है ॥ १२ ॥ जहां तक रूप और नाम है वहां तक सभी भ्रम है ! तथा, नाम और रूप से जो परे है, उसका मर्म अनुभव से जानना चाहिए ॥ १३ ॥