पृष्ठ:दासबोध.pdf/२३१

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दासबोध । [दशक ६ चौथा समास-माया का विस्तार । ॥ श्रीराम ॥ कृतयुग ( सतयुग) सत्रह लाख अट्ठाइस हजार वर्ष, त्रेतायुग वारह लाख छानबे हजार वर्ष, द्वापर आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष, कलियुग चार लाख बत्तीस हजार वर्ष-चारों युग मिला कर तेंतालिस लाख बीस हजार वर्ष हुए-यह एक चौकड़ी हुई। ऐसी हजार चौकड़ियों का ब्रह्मा का एक दिन होता है ॥ १-२॥ ऐसे जब हजार ब्रह्मा हो जाते हैं तब विष्णु की एक घड़ी होती है और जब हजार विष्णु हो जाते हैं तब महेश का एक पल होता है ॥३॥ और जब ऐसे हजार महेश हो जाते हैं तब कहीं शक्ति (प्रकृति या माया) का आधा पल होता है-ऐसी संख्या सव शास्त्रों में कही है। ॥४॥ चतुर्युग सहस्राणि दिनमेकं पितामहम् । : पितामहसहस्राणि विष्णोर्घटिकमेव च ॥ १ ॥ विष्णोरेकसहस्राणि पलमेकं महेश्वरम् । महेश्वरसहस्राणि शक्तिरर्धपलं भवेत् ॥ २ ॥ ऐसी अनंत शक्तियां होती हैं और अनंत रचनाएं होती जाती हैं, तो भी परब्रह्म की स्थिति जैसी की तैसी अखंड रहती है ॥ ५॥ सच पूछिये तो परब्रह्म की 'स्थिति' ही कहां से आई-यह बोलने की रीति है ! उसके विषय में तो वेद-श्रुति भी “ नेति नेति " (न+इति, न+इति) कहते हैं ॥ ६ ॥ चार हजार, सात सौ, साठ वर्ष कलियुग के नीत चुकेश ॥७॥ चार लाख, सत्ताइस हजार, दो लौ चालिस वर्ष कलियुग के और हैं। अब बिलकुल वर्णसंकर होनेवाला है! ॥ ८॥ इस चराचर सृष्टि में एकसे एक बढ़ कर पड़े हुए हैं। इसका पारावार नहीं है ॥ ॥ कोई कहता है विष्णु बड़ा है; कोई कहता है रुद्र (महादेव) बड़ा है और कोई कहता है कि शक्ति सब में बड़ी है ॥ १०॥ इस प्रकार, अपनी अपनी इच्छा के अनुसार, सभी कहते हैं, परन्तु यह सब कल्पांत में नाश हो जायगा, क्योंकि श्रुति कहती है कि “यदृष्टं तन्नष्टम्"-अर्थात् जितना कुछ यह संख्या श्रीमत् दासबोध के रचनाकाल की है-इसकी रचना सम्बत् . १७१६ के लगभग हुई।