पृष्ठ:दासबोध.pdf/२३२

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समास ५] माया और ब्रह्म। देख पड़ता है वह सब नश्वर है ॥ १६ ॥ सब लोग अपने अपने उपास्य देवता का अभिमान रखते हैं। परन्तु सत्य का निश्चय साधु ही कर लकते हैं ॥ १२ ॥ और, साधु यही निश्चय करते हैं कि, एक सर्वव्यापक श्रात्मा ही सत्य है और बाकी सभी चराचर सृष्टि मायिक है ॥१३॥ भला • आपही अपने मन में विचारिये कि चित्र लिखित सेना (मायिक-सृष्टि) में यह कैले जानाजाय कि कौन बड़ा है और कौन छोटा है!॥ १४ ॥ मान लीजिए कि स्वप्न में हमने बहुत कुछ देखा; और छोटे बड़े की कल्पना भी कर ली; परन्तु जागने पर देखो क्या दशा हो जाती है! ॥ १५ ॥ जब हम जग कर देखते हैं तब हमें छोटा बड़ा कोई नहीं देख पड़ता; किन्तु मालूम होता है कि वह सब स्वप्न था ॥ १६ ॥ कहां का छोटा और कहां का बड़ा-यह सब मायावी विचार है; सच पूछिये तो छोटे बड़े का निर्धार ज्ञानी ही जानते हैं ॥ १७ ॥ जो जन्म लेकर पाता है वह यही कहते कहते मर जाता है कि " मैं बड़ा हूं, मैं बड़ा हूं;" परन्तु इसका सच्चा विचार महा- त्मा ही करते हैं ॥ १८ ॥ यह बात वेद, शास्त्र, पुराण और साधुसंत सभी कहते हैं कि जिन्हें आत्मज्ञान होगया है वही श्रेष्ठ महाजन (सेठ नहीं; महात्मा ) हैं ॥ १६ ॥ तात्पर्य, सब से बड़ा एक परमात्मा ही है और ब्रह्मा-विष्णु-महेश श्रादि उसके अन्तर्गत हैं ॥ २० ॥ वह निर्गुण और निराकार है-उसमें उत्पत्ति और विस्तार कुछ नहीं है; और स्थान, मान का विचार तो इधर की बात है ॥ २१ ॥ नाम, रूप, स्थान, मान, इत्यादि सभी अनुमान मात्र हैं। ब्रह्म-प्रलय में इन सब का फैसला हो जायगा- ये सब नष्ट हो जायेंगे ॥ २२ ॥ परन्तु परब्रह्म का प्रलय में नाश नहीं हो सकता, वह नाम और रूप से अलग है-वह सदा सर्वदा अटल है ॥२३॥ जो ब्रह्मनिरूपण करते हैं, और जो ब्रह्म को पूर्ण रीति से जानते हैं, उन्हीं को ब्रह्मविद्, अर्थात् ब्राह्मण, कह सकते हैं ॥ २४ ॥ पाँचवाँ समास-माया और ब्रह्म । ॥ श्रीराम ॥ अच्छा, अव माया और ब्रह्म का निरूपण सुनिये ॥ १॥ ब्रह्म निर्गुण निराकार है और माया सगुण साकार है। ब्रह्म का पारावार नहीं है और माया का है ॥२॥ ब्रह्म निर्मल निश्चल है और माया चंचल चपल है; ब्रह्म उपाधि-रहित और माया उपाधिरूप है ॥३॥ माया दिखती है,