पृष्ठ:दासबोध.pdf/२३४

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रमास : सत्य देव का निरूपण। . माया को काल झड़प लेता है ॥ २१ ॥ ये जो नाना प्रकार के रूप-रंग देख पड़ते हैं वे सब माया के हैं। ये सब नश्वर है, परन्तु ब्रह्म शाश्वत है ॥२२॥ अन्नु । यह जो सब चराचर सृष्टि होती जाती है वह सब माया है और परमेश्वर इसके भीतर-बाहर, सब जगह, व्याप्त है ॥ २३ ॥ सकल उपाधियों से रहित परमात्मा इस प्रकार सृष्टि से अलिप्त है जैसे आकाश जल में होने पर भी जल को छूता नहीं ॥ २४ ॥ यह माया-ब्रह्म का विव- गण सन्तों के मुख से ही श्नच्छी तरह समझ पड़ता है। उनके शरण में जाने से जन्म-मरण छूट जाता है ॥ २५॥ सन्तों की महिमा का पारावार नहीं है। उनकी कृपा से सहज ही परमात्मा की प्राप्ति होती " छठवाँ समास-सत्य देव का निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ श्रोता वक्ता के बिनती करता है कि "महाराज! आप सर्वज्ञ गोस्वामी है; मेरी यह आशंका दूर करें कि, सृष्टि की उत्पत्ति के पहले, यदि ब्रह्म में सृष्टि का वीज ही नहीं होता, तो फिर यह सृष्टि जो देख पड़ती है वह सत्य है या मिथ्या?" ॥१-२॥ इस पर वक्ता जो उत्तर देता है उसे सावधान होकर सुनिये:-॥३॥ गीता के " जीवभूतः सनातन इस वचन से तो सृष्टि सत्य जान पड़ती है ॥४॥ और " यदृष्टं तन्नष्टं" (जो दृश्य है वह नश्वर है) इस श्रुतिवाक्य से सृष्टि मिथ्या जान पड़ती है- अब साँच मँट का निबटेरा कौन करे? ॥५॥ इसे यदि सत्य कहें तो नाश भी होती है; मिथ्या कहें तो दिखती भी है । अस्तू, श्रव, जैसी है वैसी बतलाते हैं ॥ ६॥ इस सृष्टि में बहुत से लोग, कोई अज्ञान; कोई सज्ञान, हैं-इसी लिए समाधान नहीं होता ॥ ॥ अज्ञान लोगों का मत है कि सृष्टि सत्य है और उसी प्रकार देव, धर्म, तीर्थ और व्रत भी सत्य ही है ॥ ८ ॥ शानी कहता है कि "मूर्खस्य प्रतिमा पूजा"-मूर्तिपूजा मूखों के लिए है-और सृष्टि भी सत्य नहीं है, क्योंकि प्रलय में उसका नाश होगा" ॥ ६ ॥ इस पर अज्ञान कहता है " तो फिर संध्यास्नान, गुरुभजन और तीर्थाटन क्यों करना चाहिए?"॥१०॥ ज्ञानी इसका उत्तर देता है:- गीता में परमात्मरूप श्रीकृष्ण ने कहा है कि " ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सना- तनः"-सृष्टि में जीवरूप जो कुछ वह मेरा ही अंश है और अविनाशी है। २०