पृष्ठ:दासबोध.pdf/२३७

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दासबोध। [ दशक ६ तोड़ डालते हैं ! ॥३४॥ किसी देवता को भ्रष्ट कर डालते हैं; किसीको पानी में डाल देते हैं और किसी देवता को कोई दुष्ट पैरों तले डाल देते हैं ॥ ३५ ॥ इस पर लोग कहते हैं कि " क्या बतलावे, इस तीर्थ की महिमा तो बड़ी थी; परन्तु वह दुरात्मा सन सत्यानाश कर गया !. अब न जाने इसका लत्य कहां चला गया!" ॥ ३६ ॥ किसी देवता को .. सुनार लोग धड़ते हैं, किसीको ढालनेवाले ढालते हैं और किसी पाषाण- देवता को संगतराश लोग घड़ते हैं ॥ ३७॥ नर्मदा और गंडिका नदी के तीर भी लाखों देवता पड़े रहते हैं। उन असंख्यों गोटों की गणना कौन कर सकता है ? ॥ ३८ ॥ चक्रतीर्थ में असंख्यों चक्रांकित देवता पड़े रहते हैं-कोई एक देवता मन में निश्चित ही नहीं होता! ॥ ३६॥ वाण, तान्दल, और स्फटिक की मूर्तियां तथा अनेक ताने, आदि के सिक्के, पूजे जाते हैं-कौन जान सकता है कि ये देवता सच्चे हैं या भूठे ! ॥४०॥ कोई रेशम का देवता बनाते हैं और जब वह टूट या सड़ जाता है तब फिर मिट्टी की मूर्ति बना कर पूजने लगते हैं ॥ ४१ ॥ कोई भक्त कहते हैं कि “भाई ! हमारा देवता तो बहुत सच्चा था; हमें विपत्ति में बड़ी मदद देता था और सदा हमारे मनोरथ पूर्ण करता था; परन्तु, अब इसका सत्व चला गया-क्या किया जाय, जो बदा था वही हुआ होन- हार को ईश्वर भी नहीं रोक सकता !!" ॥ ४२-४३ ॥ अरे मूर्ख ! धातु, पत्थर, मिट्टी, काठ और चित्र आदि भी कहीं देव हो सकते हैं ? क्यों भ्रान्ति में पड़ा हुआ है ? ॥ ४४ ॥ यह सिर्फ अपनी कल्पना है। कर्म के अनुसार फल मिलता है । वह सत्य देव कोई और ही है ४५॥ वेद, शास्त्र और पुराण कहते हैं कि यह सृष्टि सिर्फ माया का भ्रम है-और बिलकुल मिथ्या है ॥ ४६॥ साधु-संत और महानुभावों का भी यही अनुभव है । सत्य देव इस पंचभूतात्मक सृष्टि से परे है। वह शाश्वत है और सृष्टि अशाश्वत है ॥ ४७ ॥ सृष्टि के पहले, सृष्टि के वर्तमान समय में, और सृष्टि के नाश होने पर, वास्तव में वह सत्य देव बरावर स्थिर रहता है-वह आदि-अन्त-रहित है ॥४८॥ यही सब का निश्चय है-इसमें कुछ भी संशय नहीं है। माया और ब्रह्म का व्यतिरेक तथा अन्वय-उन दोनों का सम्बन्ध-सिर्फ कल्पना है ॥ ४६॥ केवल एक कल्पना के पेट में जो आठ सृष्टियां बतलाई जाती हैं वे ये हैं:-- ॥ ५० ॥

  • इन उदाहरणों से, उस समय के धार्मिक अत्याचार का अच्छा पता चलता है। यह

अत्याचार बहुधा यवनों के हाथ से होता था।