पृष्ठ:दासबोध.pdf/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

• समास ] सगुण-भजन। पहती कल्पना की सृष्टि, दूसरी शाब्दिक सृष्टि और तीसरी प्रत्यक्ष सृष्टि, जिसे सब जानते हैं ॥ ५१ ॥ चौथी चित्रलेप-सृष्टि, पाँचवीं स्वप्न- सृष्टि, छटी गन्धर्व-सृष्टि और सातवीं ज्वर-सृष्टि है ॥ ५२ ।। आठवीं सृष्टि दृष्टि-बन्धन है-ये पाठ सृष्टियां हुई श्रव इनमें श्रेष्ठ कौन सी है, जो सत्य मानी जाय? ॥ ५३ ।। इसी लिए कहते हैं, कि सृष्टि नाशवान् है-यह वात सब संत-महंत जानते हैं। तथापि, आत्मज्ञान की दृढ़ता के लिए, साधन के तौर पर, सगुण परमात्मा का भजन अवश्य करना चाहिए ॥ ५४॥ सगुण के ही श्राधार से, और सन्त-समागम-द्वारा सारासार के विचार से, अवश्य निर्गुण मिलता है ॥ ५५ ॥ अच्छा, अब, रहने दो; इतना बहुत है। सन्त-समागम से सब समझ पड़ता है, अन्यथा मन सन्देह में पड़ा रहता है ॥५६॥ इतने पर शिष्य ने श्राक्षेप किया कि "सृष्टि का मिथ्या होना तो मालूम हो गया; परन्तु जब यह सब मिथ्या है तव फिर देख क्यों पड़ती है ? ॥ ५७ ॥ हे स्वामी! दृश्य प्रत्यक्ष दिखता है, इस लिए सत्य ही जान पड़ता है-इसके लिए क्या करें, सो वतलाइये" ॥ ५८ इसका उ- त्तर अगले समास में अच्छी तरह दिया गया है । सावधान होकर सु- निये ॥ ५६ ॥ सृष्टि को मिथ्या तो जानना ही चाहिए और सगुण की रक्षा भी करना चाहिए । यह अनुभव का रहस्य अनुभवी ही जानते सातवाँ समास-सगुण-भजन । ॥ श्रीराम ॥ "ज्ञान ले जब दृश्य मिथ्या प्रतीत हो चुका तब फिर भजन क्यों करना चाहिए-उससे क्या प्राप्त होगा-सो मुझे बतलाइये ॥१॥ जब ज्ञान से श्रेष्ट कुछ है ही नहीं, तब फिर उपासना की क्या जरूरत है और उपासना से मनुष्य को क्या प्राप्त होता है ? ॥२॥ जब मुख्य सार निर्गुण है-वहां सगुणं दिखता ही नहीं है-तब फिर बतलाइये भजन करने से क्या लाभ होगा? ॥३॥ जब यह सब एक वार नश्वर सावित हो चुका, तब फिर इसका भजन क्यों करना चाहिए और सत्य को छोड़ कर असत्य का भ- जन करेगा कौन? ॥४॥ जब असत्य वस्तु मालूम हो गयी, तब फिर नेम क्यों पीछे लगा है ? सत्य छोड़ कर क्यों इस गड़बड़ में पड़ना चाहिए ? ॥ ५॥ निर्गुण से तो मोक्ष मिलता है और वह प्रत्यक्ष अनुभव में प्राता