पृष्ठ:दासबोध.pdf/२३९

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दासबोध। [ दशक ६ है; परन्तु हे स्वामी ! बतलाइये, सगुण क्या देता है ? ॥ ६ ॥ पहले तो आप बतलाते हैं कि सगुण नाशवान् है; फिर आप ही कहते हैं कि.भ- जन करो; परन्तु अब भजन किस लिए करें? ॥ ७॥ महाराज के डर से कह नहीं सकते; परन्तु यों तो यह कुछ समझ में नहीं आता ! जब साध्य ही प्राप्त होगया, तब साधन में क्यों लगें ?"॥८॥ श्रोता की इस शंका पर वक्ता उत्तर देता है:-॥६॥ गुरु के वचनों का प्रतिपालन करना परमार्थ का मुख्य लक्षण है और वचन-भंग करने से अवश्य ही हानि होती है ॥ १०॥ अतएव, गुरु की आज्ञा शिरोधार्य करके, सगुण-भजन अवश्य मानना चाहिए । इस पर श्रोता बोल उठा कि, “ यह सगुण-भजन ईश्वर ने हमारे पीछे क्यों लगा दिया है ? ॥ ११ ॥ ईश्वर इसका क्या उपकार मानता है, इससे क्या सा- क्षात्कार होता है, अथवा क्या इससे ईश्वर प्रारब्ध का लिखा हुश्रा भेट डालता है ? ॥ १२॥ जब होनहार पलट ही नहीं सकता, तब फिर मनुष्य भजन क्यों करे ? यह तो कुछ समझ में नहीं आता ! ॥१३॥ महा- राज की आज्ञा मान्य है-उसे कौन टाल सकता है; परन्तु इससे क्या लाभ है, सो मुझे बतलाइये" ॥ १४ ॥ इस पर वक्ता कहता है:-अच्छा, तू ज्ञानी बनता है; पर सावधान होकर ज्ञान के लक्षण तो बतला, तुझे कुछ करना पड़ता है या नहीं ? ॥ १५॥ तू भोजन करता है; जलपान क- रता है और मलमूत्र त्याग करता है-इनमें से कोई भी बात नहीं छूटती ॥ १६ ॥ लोगों को खुश तू रखता है; अपने और पराए को तू पहचानता है; ये सब बातें तो तू छोड़ नहीं सकता; तव फिर क्या भजन का छोड़ना ही तू ज्ञान का लक्षण समझता है ? ॥ १७ ॥ ज्ञान और विवेक से सव कुछ मिथ्या तो समझ लिया; परन्तु छोड़ा कुछ नहीं तो फिर बतला भाई, भजन ही ने तेरा कौन घोड़ा खोला है.? ॥१८॥ साहब के पैरों तले तो तू खुशी से लोटता है, तथा जान-बूझ कर नीच बनता है; परन्तु परमात्मा को नहीं मानता-यह कहां का ज्ञान है ? ॥ १६ ॥ ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदि जिसके आगे हाथ जोड़े खड़े रहते हैं उसे यदि तेरे समान एक क्षुद्र मनुष्य न भजेगा तो क्या होगा ? ॥२०॥ राम हमारा उपास्य है। राम ही से हमारा परमार्थ है और वही, समर्थों का भी समर्थ, देवताओं तक को मुक्त करनेवाला है ॥ २१ ॥ उसके हम सेवक जन हैं; उसीकी सेवा से हमें ज्ञान मिला है-उसके प्रति यदि अभाव रखेंगे तो अवश्य पतन होगा !॥ २२ ॥ गुरु जो सारासार का विचार बतलाता है उसे मिथ्या कैसे कह सकते हैं ? परन्तु, तू यह विचार क्या जाने; चतुर पुरुप