पृष्ठ:दासबोध.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समास ] सगुरण-भजन । सब जानते हैं ! ॥ २३ ॥ जो समर्थ के मन से गिर गया; जान लो कि उसका भाग्य खाँटा है-उसका यही हाल है, कि जैसे अभागी पुरुप राज्यपद से च्युत हो जाय !॥२४॥ जो अपने मन में जानता है कि में बड़ाई, वह ब्रह्मज्ञानी नहीं है-विचारपूर्वक देखने से तो वह प्रत्यक्ष दे- हाभिमानी है।॥ २५ ॥ जो वास्तव में, न तो राम का भजन करता है, और न यही कहता है कि मैं न करूंगा तो इससे समझना चाहिए कि उसके मन में सन्देह अभी छिपा हुछा है!॥२६॥ न इसे ज्ञान कह सकते है और न भजन कह सकते हैं-यह केवल देहाभिमान है । इसमें कोई स- न्देह नहीं है । तेरा उदाहरण प्रत्यक्ष है! ॥ २७ ॥ अस्तु । अब ऐसा न करना चाहिए; राम भजन में लगना चाहिए-वही सच्चा ज्ञान है ॥ २८ ॥ राम दुर्जनों का संहार करता है, भक्तों की रक्षा करता है। यह प्रत्यक्ष है ॥ २६ ॥ अनुभव की बात है, कि रामकृपा से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सम्पूर्ण विघ्न दूर होते हैं ॥ ३० ॥ रघुनाथ के भजन से ही ज्ञान हुना है: रघुनाथ के भजन से ही महत्व बढ़ा है, इस लिए पहले तुझे यही करना चाहिए ! ॥३१॥ जो कि यह अनुभव की बात है, और तुझे विश्वास नहीं आता; अतएव, स्वयं करके देखना चाहिए !॥ ३२॥ रघु- नायजी का स्मरण करके जो काम किया जाता है, वह तत्काल ही सिद्धि को प्राप्त होता है; परन्तु अन्तःकरण में यह विश्वास होना चाहिए कि कर्ता राम ही है ॥ ३३॥ स्वयं अपने को कर्ता न मान कर राम को कर्ता मानना सगुण आत्मनिवेदन भक्ति का लक्षण है और निर्गुण आत्मनिवेदन में तो स्वयं भी निर्गुण हो कर ही अनन्य हो जाना पड़ता है ॥ ३४ ॥ अपने को कर्ता मानने से कदापि कोई बात नहीं बनती। इस बात का अनुभव प्राप्त करना कुछ कठिन नहीं ॥३५॥ अगर तू कहेगा कि मैं कर्ता हूं तो इससे तू कष्टी होगा और राम को कर्ता मानने से तुझे यश, कीर्ति और प्रताप मिलेगा ॥३६॥ सिर्फ भावना से ही चाहे परमात्मा से फूट कर लो, और चाहे उसकी कृपा सम्पादन कर लो अर्थात् यदि अपने में कर्ता की भावना करोगे तो परमात्मा से फूट होगी और यदि परमात्मा में कर्ता की भावना करोगे तो वह प्रसन्न होगा ॥ ३७॥ हम सब दो दिनों के हैं और परमात्मा अनंत काल के लिए है; हम सब थोड़ी • *सगुण के निवेदन में सर्वस्वता का पूर्ण भार राम पर रहता है, और स्वयं केवल नाम मात्र के लिए रहता है; परन्तु निर्गुण के निवेदन में स्वयं भी विलकुल राम ही हो जाता है।