पृष्ठ:दासबोध.pdf/२४१

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दासबोध। [ दशक ६ पहचान के हैं और परमात्मा को तीनों लोक जानते हैं॥३॥रघुनाथ भजन को बहुत लोग मानते हैं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश तक राम-भजन में तत्पर रहते हैं ॥ ३६॥ यदि हम भक्त लोग, ज्ञान-चल से, उपासना को न माने तो, इस दोष के कारण, अभक्त बन कर अधोगति को प्राप्त हों।॥ ४०॥ और यदि, बड़ा होकर भी, परमात्मा हमारी उपेक्षा करे, तो फिर उसकी बात वही जाने, परन्तु श्रेष्ठ के लिए बे-जा बात अच्छी नहीं ॥ ४१ ॥ साधुओं की देह के साथ उपासना लगी रहती है; परन्तु भीतर से वे परमात्मा में मिले रहते हैं-अर्थात् देहाभिमान छोड़ कर वे जन्म भर ईश्वरोपासना करते रहते हैं ॥ ४२ ॥ साधु लोग, स्वप्न के दृश्यों की तरह, इस सृष्टि को मिथ्या मानते हैं । यह वात राम-भजन से मालूम होती है ॥ ४३-४४ ॥ श्रोताओं की यह आशंका, कि दृश्य (सृष्टि) यदि मिथ्या है तो देख क्यों पड़ता है, अगले समास में मिटाई गई है ॥ ४५ ॥ आठवाँ समास-दृश्य का मिथ्याभास । ॥श्रीराम ॥ अव यह निरूपण सुनिये, कि यह दृश्य (सृष्टि) का आभास मिथ्या कैसे है ॥ १॥ जो कुछ देख पड़े उसे सत्य ही मान लेना ज्ञाता का देखना नहीं है; जड़ मूढ़ और अज्ञान लोग चाहे भले ही इसे सत्य माना करें। ॥२॥ इस संशय में कभी न आ जाना चाहिए कि मुझे जो कुछ दिख पड़ता है वही सच्चा है-इसमें दूसरे की कुछ नहीं चल सकती । सिर्फ, इन चर्मचक्षुओं से दिख पड़ता है-इसी आधार पर करोड़ों ग्रन्थों और सन्त-महन्तों की बातों को मिथ्या कैसे कह सकते हैं? ॥ ३-४॥ मृग, मृगजल (मृगतृष्णा) को देख कर, भ्रमिष्ट की तरह उधर दौड़ता है; परन्तु उस पशु से यह कौन बतलावे कि यह जल नहीं है-मिथ्या दृश्य है ! ॥५॥ रात को स्वप्न देखा, कि बहुतसा द्रव्य मिल गया और उस द्रव्य-' द्वारा बहुत लोगों से व्यवहार भी कर लिया-इसे सच कैसे माने ? ॥६॥ किसी विचित्र कला-कुशल चितरे के बनाये, हुए चित्र देखने से प्रीति पैदा होती है-परन्तु वहां है क्या, मिट्टी ।। ७॥ अनेक प्रकार की रमणी, हाथी और घोड़ों को रात में देखने से तो मन मोहित हो जाता है; पर दिन को देखने से वही खाल बहुत बुरी लगती है ! ८ ॥ काठ और