पृष्ठ:दासबोध.pdf/२४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दासबोध। [ दशक ६ दर्पणों में देख पड़ती है और दीपक-पंक्तियों की भी शीशों में अनेक आभाएं देख पड़ती हैं ॥२२॥ ऐसे ये बहुत प्रकार के कौतुक सच्चे के समान ही देख पड़ते हैं; परन्तु इन सब को सच कैसे मान सकते हैं? ॥२३॥ इसी प्रकार यह माया भी झूठी बाजीगरी है । सच्ची की तरह देख पड़ती है; परन्तु ज्ञाता लोग इसे सच नहीं मानते ॥ २४ ॥ यदि झूठे में सच की सी भावना कर ली जाय तो फिर पारखियों की क्या जरूरत है ? ये अविद्या की करतूतें ऐसी ही होती हैं ! ॥ २५ ॥ मनुष्यों की बाजीगरी भी बहुत लोगों को सच्ची सी जान पड़ती है; परन्तु अन्त में, खोज करने पर, उसकी मुटाई मालूम हो जाती है ॥ २६ ॥ यही हाल राक्षसों की माया का भी है-वह देवताओं को भी सच्ची जान पड़ती है। देखो न: पंचवटी में राम हरिन के पीछे दौड़े ! ॥ २७ ॥ राक्षस लोग अपनी असली काया पलट लेते हैं, एक ही के बहुत हो जाते हैं और रक्त के वूद से भी पैदा हो जाते हैं ॥ २८ ॥ अभिमन्यु के व्याह के समय, घटोत्कच की माया से, अनेक राक्षस नाना प्रकार के पदार्थ और फल आदि होगये! स्वयं कृष्ण ने ही गोकुल में कितने ही कपटरूपी दैत्यों का वध किया ॥२६॥ राम से युद्ध करते समय रावण ने कैसा कपट रचा! माया के अनेकों सिर रचता गया ! और कालनेमि, हनुमान को मारने के लिए, किस प्रकार कपटऋपि बन कर आश्रम में बैठा था ! ॥ ३०॥ नाना प्रकार के कपटमति दैत्य जन देवताओं से मारे न मरे तव शशि (देवी) प्रकट हुई और उसने उनका संहार किया! ॥३१॥ यह सब राक्षसों की माया है। उसे देवता भी नहीं जान सकते । उनकी कपटविद्या की लीला अघ- टित है ॥ ३२॥ मनुष्यों की बाजीगरी, राक्षसों की वोडम्बरी और भगवान की नाना प्रकार की विचित्र माया-ये तीनों सच्ची हो के समान जान पड़ती हैं; परन्तु विचार करने पर वे कुछ नहीं हैं-भीतर प्रवेश करके देखने से उन- का मिथ्यापन प्रकट हो जाता है। ३३-३४॥ अगर माया को सच कहते हैं तो यह नाश होती है और यदि झूठ कहते हैं तो देख पड़ती है-अर्थात् दोनों ओर से मन में अविश्वास ही रहता है ॥ ३५ ॥ परन्तु वास्तव में यह सच नहीं है-साया की बात मिथ्या है। यह सम्पूर्ण दृश्य स्वप्न की तरह है ॥ २६ ॥ सुन भाई ! अगर तुझे भास ही सत्य जान पड़ता हो तो फ़िर यहां तू भूलता है ॥ ३७ ॥ यह दृश्यभास अविद्यात्मक है और तेरी देह भी अविद्यात्मक है, इसी लिए यह अविवेक धुसा हुआ है ! ॥ ३८॥ यह अविद्यात्मक लिंग-देह ही फा कारण है कि, दृष्टि से दृश्य देखा जाता