पृष्ठ:दासबोध.pdf/२४५

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दासबोध। [दशक ६ खोज लेते हैं और बाकी लोग इसी दृश्य माया में फंसे रहते हैं ॥ ३॥ द्रव्य अन्दर रख कर यदि ऊपर से पानी भर दिया जाय तो लोग कहते हैं कि यह तो सरोवर भरा है; पर उसके भीतर का हाल समर्थ जनों को ही मालूम होता है ॥ ४॥ इसी प्रकार समर्थ ज्ञाता लोग परमार्थ को पहचान लेते हैं और बाकी लोग दृश्य पदार्थों को ही अपना स्वार्थ सम- झते हैं ! ॥ ५॥ कुली लोग बोझा ढोते हैं, और श्रेष्ठ पुरुप सुन्दर रत्नों का भोग करते हैं । कर्मयोग से जिसको जो बदा है उसको वही अच्छा भी लगता है ॥ ६॥ कोई जंगल में लकड़ी काट और कोई कंडे एकत्र करके अपना निर्वाह करते हैं; परन्तु उत्तम पदार्थ भोगनेवाले नृपतियों का यह हाल नहीं होता ॥ ७ ॥ विद्वान् पुरुष सुखभोग करते हैं और अन्य लोग भार ढोते ही ढोते मर जाते हैं ॥८॥ कोई दिव्य भोजन करते हैं, कोई विष्ठा ही बटोरा करते हैं-सभी अपने अपने कार्य का अ- भिमान रखते हैं ! ॥ ६॥ श्रेष्ठ पुरुष सार पदार्थों का सेवन करते हैं और श्रालसी मनुष्य असार वस्तुओं का ग्रहण करते हैं। सच तो यह है कि, सार-असार की बात सज्ञान जानते हैं ॥१०॥ पारस और चिन्तामणि गुप्त हैं; कंकड़ और कांच प्रकट हैं, तथा सुवर्ण और रत्नों की खानियां गुप्त हैं; और पत्थर तथा मिट्टी प्रगट हैं ॥ ११ ॥ दक्षिणावर्ती शंख, दक्षिणावर्ती बेल और अमोल वनस्पतियां गुप्त हैं; परन्तु अंडा, धतूरा और सिप्पियां बहुत सी हैं-और प्रगट हैं ॥ १२॥ कल्पतरु कहीं नहीं देख पड़ता, परन्तु दूसरे वृक्षों का बहुत विस्तार है । चन्दन के वृक्ष नहीं दिखते; परन्तु बेरी, बवूल, आदि के वृक्ष बहुत हैं ॥ १३ ॥ कामधेनु इन्द्र ही के पास है; परन्तु अन्य गाई-बछड़े बहुत भरे हुए हैं। राज्यभोग राजा लोग ही भो- गते हैं। अन्य लोग कर्मानुसार सुख-दुख भोगते हैं ॥ १४॥ अनेक प्रकार के व्यापार करनेवाले लोग भी अपने को धनवान् कहते हैं। परन्तु कुबेर की महिमा कुछ दूसरी ही है ॥ १५ ॥ इसी प्रकार गुप्त अर्थ (परमात्मा) के प्राप्त करनेवाले एक योगीश्वर पुरुष ही हैं । अन्य लोग, जो पेट के दास हैं, नाना मतों को थथोलते फिरते हैं ॥ १६ ॥ लोगों को सार 'वस्तु' नहीं दिख पड़ती, असार दिख पड़ती है । सारासार का विवेक साधु जानते हैं ॥ १७ ॥ सच-झूठ की बात अन्य लोग क्या जाने ? साधु-सन्तो की बातें साधु-सन्त ही जानते हैं ॥१८॥ जिस प्रकार गुप्त धन, एक विशेष प्रकार का अंजन लगाने से, देख पड़ता है, उसी प्रकार सन्त-समागम के के अंजन से गुप्त परमात्मा ढूँढ़े मिल जाता है ॥ १६ ॥ जिस प्रकार राजा के पास रहने से धन सहज ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार सन्तों के पास